चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि आदमी तीन चीजों के लिए जीता है-मेरा नाम रोशन हो, मेरी कोठी सुन्दर हो और मेरे वस्त्राभूषण सबसे ज्यादा सुन्दर हो। वह सारा जीवन इन तीनों को पाने में ही खपा देता है।
आचार्य ने कहा कि आदमी इतना भी नहीं सोचता कि पलक गिरते ही, आंख बन्द होते ही ये तीनों चीजें बदल दी जाएंगी। नाम-स्वर्गीय, वस्त्राभूषण की जगह कफन, कोठी की जगह श्मशान होगा। स्थाई संसार में बदल गया। नाम कोठी वस्त्राभूषण सब क्षणभंगुर थे, एक क्षण में बदल गए। मात्र आत्मा परमात्मा शाश्वत है।
इसे पाने की कोशिश ही नहीं की। धर्म भी किया तो अहंकार के साथ। नाम भी रोशन हुआ तो अभिमान के साथ। कोठी भी मशहूर हुई तो घमण्ड के साथ। अगर वास्तव में जीना है तो अपने सुख-दुख परमात्मा के चरणों में छोड़ दो। व्यर्थ के तर्क मत करो। तर्क धम के लिए दीवार हैं। परमात्मा प्रेम द्वार है। बुद्धि के लिए जहां पराजय है, हृदय के लिए वही विजय है इसलिए सुख-दुख दोनों उसे दे दो। वह धन-दौलत से आकर्षित नहीं होता।