चेन्नई. रायपुरम स्थित सुमतिनाथ जैन भवन में विराजित आचार्य मुक्तिप्रभ सूरी की निश्रा में आचार्य विनीतप्रभ सूरी ने कहा जैन जगत में एक वर्ष में छह अष्टाह्निका पर्व, तीन चौमासी अष्टाह्निका, दो शाश्वत आयंबिल ओली और एक पर्यूषण अष्टाह्निका आता है।
इन अष्टाह्निका पर्वों में विशेष तप, जप और व्रतों का पालन करने का प्रावधान है। मुख्यतया पर्यूषण महापर्व के दौरान आठ दिन (64 प्रहर) तक गृहस्थों को पौषध व्रत करना चाहिए। यदि पूर्ण नहीं हो पाता है तो न्यूनाधिक उपवास सहित पौषध व्रत करना श्रावकों के लिए आवश्यक है।
हर एक गृहस्थ की मंशा होती है कि संसार की आधि-व्याधि उपाधि से छुटकारा पाकर संतों की तरह त्यागमय जीवन व्यतीत करें। साधु जीवन में आस्वाद के लिए पौषण व्रत है।
हमारी आराधना को जो पुष्ट करे वह पौषध व्रत है। पौषध से आत्मा पुष्ट होती है। आत्मा में सात्विक भाव प्रकट होते हैं।