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सम्यक आजीविका ही श्रावक की पहचान होती है: जयधुरंधर मुनि

सम्यक आजीविका ही श्रावक की पहचान होती है: जयधुरंधर मुनि
जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन मे जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में चल रहे श्रावक के 12 व्रतों के शिविर के अंतर्गत सातवें व्रत का विवेचन करते हुए जयपुरन्दर मुनि ने कहा हर मनुष्य को अपने जीवन का निर्वाह करने के लिए आजीविका का साधन जुटाना पड़ता है। साधक को जीवन का निर्वाह ही नहीं अपितु निर्माण करने का भी चिंतन करना चाहिए।
आजीविका जुटाने के अनेक माध्यम होते हैं। एक चोर, लुटेरा, डाकू, वेश्या आदि पापी व्यक्ति की अपने जीवन का निर्वाह करते हैं लेकिन उनकी आजीविका सामाजिक दृष्टि से हीन मानी जाती है जबकि एक आदर्श श्रावक न्याय नीति एवं परिश्रम से अर्जित सम्यक आजीविका का ही आलंबन लेता है ।
वास्तव में सम्यक आजीविका ही श्रावक की पहचान होती है। एक श्रावक 15 कर्मादान का सेवन न करते हुए ऐसा कोई भी व्यापार नहीं करता जिसमें हिंसा जुड़ी हुई हो और जहां कर्मों का समूह रूप में ज्यादा बंध होता हो। अनादि काल से कर्मों के अधीनस्थ संसार में भटक रही आत्मा को मुक्त करने के लिए कर्मों के बंध के कारणों को जानते हुए उनसे बचना जरूरी है।
 संसार में तीन प्रकार के तत्व होते हैं पहला ज्ञेय अर्थात जानने योग्य दूसरा हेय अर्थात छोड़ने योग्य और तीसरा उपादेय अर्थात ग्रहण करने योग्य। आत्मा के लिए विषय, कषाय, राग, द्वेष आदि छोड़ने योग्य तत्व है।
शरीर के द्वारा आहार लेने के पश्चात उसमें से भी छोड़ने योग्य तत्वों को छोड़ दिया जाता है।अवगुणों को छोड़ने पर ही गुणों को ग्रहण किया जा सकता है । जिस प्रकार यदि कमरे में एक तरफ कचरा पड़ा हो और दूसरी तरफ यदि सुगंधित पदार्थ से सुगंध फैलाना चाहे तो भी दुर्गंध दूर नहीं होगी।
कचरे को बाहर फेंकने के बाद ही सुगंध का महत्व रहता है। इसी प्रकार से छोड़ने योग्य तत्वों को छोड़ने के बाद ग्रहण करने योग्य धर्म का आराधन करना श्रेयस्कर सिद्ध होता है । संसार के स्वरूप का ज्ञान होने पर ही आत्मा के हित और अहित का बोध होता है। अहितकारी तत्वों से बचने पर ही आत्मा का उत्थान संभव है।
पाप आत्मा का अहित करने वाला होता है जबकि धर्म आराधना से आत्मा का हित होता है। पाप के स्वरूप को जानने पर ही उससे बचा जा सकता है। अतः कुछ तत्व जानने योग्य बताया गया है। असंयति एवं पापी व्यक्तियों का पोषण करने से पाप की वृद्धि होती है । पाप की अभिवृद्धि में निमित बनने वाला भी पाप का भागीदार बनता है।
शुक्रवार को 12 व्रत शिविर का समापन होगा । संघ मंत्री गौतमचंद रूणवाल ने बताया मुनिवृंद के सानिध्य में शनिवार से नवपद आयम्बिल ओली तप आराधना प्रारंभ होगी जिसके अंतर्गत विशेष प्रवचन, सामूहिक क्रिया के साथ आयम्बिल नीवी  की भी व्यवस्था संघ की ओर से रखी गई है।

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