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सम्यक्त्व की प्राप्ति से ही सम्बोधि की प्राप्ति : मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार

सम्यक्त्व की प्राप्ति से ही सम्बोधि की प्राप्ति : मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार

26वें विकास महोत्सव पर सम्बोधि ग्रंथ पर विचार संगोष्ठी का हुआ आयोजन

श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी ट्रस्ट ट्रिप्लीकेन चैन्नई के तत्वावधान में 26वाॅ विकास महोत्सव आचार्य महाप्रज्ञ की कृति सम्बोधि ग्रंथ पर विचार संगोष्ठी का आयोजन मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमारजी एवं मुनि श्री रमेशकुमारजी के सान्निध्य में ट्रिप्लीकेन तेरापंथ भवन में हुआ।

मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार ने सम्बोधि के माध्यम से आध्यात्मिक विकास की चर्चा करते हुए कहा कि संसार में भौतिक विकास की चर्चा बहुत होती हैं|

आज हम सम्बोधि के माध्यम से आध्यात्मिक विकास की चर्चा कर रहे हैं। सम्यक्त्व प्राप्त करके ही सम्बोधि को प्राप्त किया जा सकता हैं।

सम्यक् ज्ञान से ही मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता हैं| सम्यक् दर्शन से आस्था की पुष्टि होती है। सम्यक् चारित्र से आत्मा निर्मल बन जाती है। 

मुनि मेघकुमार भगवान महावीर से संबोध प्राप्त होने के पश्चात कहते हैं- इन दो चक्षुओं को छोड़कर मैं पूरा शरीर निर्ग्रन्थों की सेवा में समर्पित करता हूँ।

जैसा उचित समझे, वैसी सेवा मुझ से लें। आपने उपस्थित श्रद्धालुओं से आह्वान करते हुए कहा कि आज संकल्प ले कि प्रतिदिन सम्बोधि के एक अध्याय का जरुर स्वाध्याय करुंगा। मुनिश्री के आह्वान पर काफी लोगों ने संकल्प स्वीकार किये|

विकास महोत्सव पर सम्बोधि को जीकर सत्य को समझने की प्रेरणा देते हुए मुनि श्री रमेशकुमार ने कहा – जीवन दर्शन का अद्भुत ग्रंथ है सम्बोधि। पीछे मुडकर देखने से सम्बोधि में छिपे रहस्यों को हम समझ नहीं पायेंगे। आचार्य महाप्रज्ञ की गीता की शैली में इस ग्रंथ की रचना की। गीता में जैसे श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद चलता है वैसे ही सम्बोधि में भगवान महावीर और मुनि मेघकुमार का संवाद चलता है। इसके सोलह अध्याय है और 786 संस्कृत के श्लोक हैं। सम्बोधि आत्म मुक्ति का राजमार्ग हैं। आत्मा को सम्पूर्ण स्वतंत्रता की ओर ले जाने वाला हैं।

मुनि श्री विमलेशकुमारजी ने कहा- जीवन में आध्यात्मिक विकास करना है तो आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा रचित कृतियों का गहराई से अध्ययन करे।

मुनि श्री सुबोधकुमारजी ने कहा- वर्तमान के विकास की समीक्षा हो और भविष्य के विकास की योजना बने, तभी समग्रता से विकास हो सकेगा।

मुख्य अतिथि मद्रास विश्वविद्यालय के जैनोलोजी  विभागाध्यक्ष श्रीमती प्रियदर्शनी जैन ने कहा- सम्बोधि साहित्य नहीं अपितु बहुमूल्य ग्रंथ है।

जैसे गीता ने श्रीकृष्ण और अर्जुन को अमर कर दिया, वैसे ही आचार्य महाप्रज्ञ ने सम्बोधि के माध्यम से भगवान महावीर और मुनि मेघकुमार को अमर बना दिया।

आचार्य महाप्रज्ञ की सम्बोधि को गहराई से पढ़ लेंगे तो उनके प्राण को छू लेंगे। सम्बोधि क्या है? इसे व्याख्यायित करते हुए आपने आगे कहा- सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र को सम्बोधि कहा हैं।

आचार्य महाप्रज्ञ की जन्म शताब्दी वर्ष पर घर-घर में सम्बोधि का संगान होना चाहिए। गागर में सागर के सम्मान है – सम्बोधि। सरल संस्कृत भाषा में इसके श्लोकों का निर्माण किया गया हैं। अनेक भाषाओं में इस का अनुवाद हो तो इस ग्रंथ का व्यापक प्रचार प्रसार हो सकता हैं। स्कूलों, कोलेजों, विश्वविद्यालयों में सेमिनार और कम्पीटिशन हो जिससे अधिक से अधिक लोग इस के माध्यम से मोक्ष मार्ग पर चल सके

मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार बी एल आच्छा ने आचार्य महाप्रज्ञ की कृति भक्तामर : एक अंतस्तल का स्पर्श कृति पर विचार व्यक्त करते हुए कहा- भक्तामर एक मंत्र की तरह बहुत प्रचलित हैं| 7वीं शताब्दी में आचार्य मानतुंगसूरी ने इसकी रचना की। आचार्य महाप्रज्ञजी ने दार्शनिक शैली में इसकी विवेचना की है।

इस स्तोत्र के नियमित पाठ से आत्म मुक्ति की प्रेरणा मिल सकती है। इसके भीतरी भावों को समझने से आत्मा कमल के फूल की तरह विकसित हो सकती हैं| आपने आचार्य महाप्रज्ञ की रचनाओं को गहराई से पढ़ने के लिए अनेक भारतीय संतों का इस संदर्भ में उल्लेख किया।

इससे पूर्व इस विचार संगोष्ठी का शुभारंभ मुनि रमेशकुमार के महामंत्रोच्चारण से हुआ।ट्रिप्लीकेन तेरापंथ महिला समाज द्वारा महावीर अष्टकम से मंगलाचरण हुआ। तेरापंथ सभा चैन्नई के अध्यक्ष श्री विमल चिप्पड़ ने विकास महोत्सव पर अपनी भावना व्यक्त करते हुए अतिथियों एवं उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया।

श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी ट्रस्ट ट्रप्लीकेन चैन्नई के मुख्यन्यासी श्री गौतम सेठिया ने कहा – आचार्य महाप्रज्ञ के विचारों का अध्ययन करें तो ऐसा अहसास होता है कि उनके विचार अचिंतन से निकला चिंतन है।  संयोजिका सारिका मरलेचा ने अतिथियों का परिचय दिया। विकास महोत्सव पर ट्रिप्लीकेन तेरापंथ महिला समाज ने सुमधुर गीत प्रस्तुत किया। अतिथियों को साहित्य भेंट कर सम्मानित किया गया ।
  

मुनि विनीत कुमार जी ने विकास महोत्सव का इतिहास प्रस्तुत करते कुशलता पूर्वक संचालन किया। गौतमजी सेठिया ने ट्रस्ट की ओर से सभी का आभार ज्ञापित किया ।

        तपोभिनन्दन

मुनिश्री ज्ञानेन्द्रकुमारजी एवं मुनिश्री रमेशकुमारजी से आज प्रमोद गादिया ने 14 दिन एवं अर्चना नाहर और नवीन काबडिया ने आठ दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किये। ट्रिप्लीकेन ट्रस्ट की ओर से तपस्वियों का तप अभिनंदन किया गया।

श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, चेन्नई

स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

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