चेन्नई. किसी भी कार्य की सफलता की प्राप्ति के लिए धैर्य की जरूरत है। जीवन में जितनी भी समस्याएं होती है, उसका मूल कारण है मनुष्य की अधीरता। स्वयं धैर्य न रखने के कारण ही व्यक्ति दूसरों से कलह, झगड़ा कर बैठता है। तिरुतनी जैन स्थानक में प्रवचन के दौरान संत जयधुरंधर मुनि ने यह बात कही।
भगवान महावीर में शूरता, वीरता के साथ ही धीरता व गंभीरता भी थी तभी तो उन्होंने अनेकानेक उपसर्ग दिए जाने पर भी किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं की और न ही कोई प्रतिशोध की भावना पैदा की। वर्तमान में धैर्य का अभाव होने के कारण व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति स्थिर नहीं रह पाता।
सफलता प्राप्त न हो तब तक व्यक्ति को प्रयास जारी रखना चाहिए क्योंकि धैर्य का फल मीठा होता है। हर जीव फल प्राप्ति की अभिलाषा तो रखता है, परन्तु इंतजार नहीं करता। कभी भी किसी भी व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन संभव है। परिस्थिति तो नहीं बदली जा सकती, किन्तु मनस्थिति तो बदली जा सकती है।
दूध में जामन देने के पश्चात दही में परिवर्तित होने के लिए भी समय लगता है। ठीक वैसे ही समय आने पर सब कार्य स्वत: ही सिद्ध हो जाते हैं। बस उसके लिए सतत पुरुषार्थ करते हुए धैर्य को धारण करने की जरूरत है।