चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा भगवान की वाणी हितकारी और त्रिकाल सत्य होती है। उसी कारण से सभी जीवों के लिए ग्रहण करने योग्य होती हं। सत्य की हमेशा जीत होती है। सत्य परेशान हो सकता है पर पराजित नहीं हो सकता है। झूठ का कोई आधार नहीं होता । वह बदलता ही रहता है।
मुनि ने कहा श्रावक को कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। जहां झूठ है वहां लूट है।
झूठ और लूट से बचकर न्याय नीति पूर्ण प्रमाणित जीवन जीना चाहिए। व्यक्ति चार कारणों से झूठ बोलता है क्रोध लोभ भय और हास्य ।
क्रोध आवेश में व्यक्ति को कुछ भी बोध नहीं रहता अत: वहां झूठ का प्रयोग हो जाता है।
लोभ के वश एक व्यापारी सत्य को जानते हुए भी झूठ का प्रयोग करते हैं जो सरासर गलत है।
जयपुरन्दर मुनि ने आचार्य जयमल के 312वें जन्मोत्सव पर कहा जिस प्रकार बहता हुआ पानी निर्मल रहता है उसी प्रकार साधु जीवन भी बहते पानी के समान ही होता है।
जैन साधु साध्वी एक स्थान पर लंबे समय तक अवस्थित नहीं रहते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों को लाभान्वित किया जा सके।
आचार्य जयमल ने भी आज से 300 वर्ष पूर्व मरुधरा की पावन वसुंधरा पर वितरण करते हुए धर्म की ज्योत जगाई। जिस प्रकार सूर्य गति ना करते हुए एक स्थान पर ही रुका हुआ रहे तो जगत के सभी चराचर जीवो को अंधकार से छुटकारा नहीं मिल सकता
उसी प्रकार महापुरुषों का विसरण भी अज्ञान अंधकार को नाश कर ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाला सिद्ध होता है। इस अवसर पर वैशाली श्रीश्रीमाल, प्रवीण पूजा मरलेचा के 8 उपवास के अनुमोदनार्थ संघ की ओर से सम्मान किया गया।