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ज्ञान वाणी

सत्यमेव जयते नातृतम्’: शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

सत्यमेव जयते नातृतम्’: शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
चेन्नई:  जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता अहिंसा यात्रा प्रणेता अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ से पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। सच्चाई का मार्ग कंटकाकीर्ण भले हो सकता है, किन्तु उसकी निष्पत्ति सदैव मंगलकारी होती है। इसलिए कहा गया ‘सत्यमेव जयते नानृतम्’ अर्थात् सत्य की सदा विजय होती है, असत्य की नहीं।
आचार्यश्री ने अणुव्रत महासमिति के तत्त्वावधान में आयोजित हुए 69वें वार्षिक अधिवेशन में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अणुव्रत के द्वारा आदमी के जीवन में सात्विकता, नैतिकता, प्रमाणिकता और धार्मिकता रहे, तो जीवन अच्छा बन सकता है। आचार्यश्री ने संयम को अणुव्रत की आत्मा बताते हुए कहा कि ‘सादा जीवन उच्च विचार, मानव जीवन का शृंगार’। आदमी के जीवन के सादगीपूर्ण जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के जीवन में सच्चाई, ईमानदारी हो तो आदमी का जीवन अच्छा बन सकता है। आदमी को अपने जीवन में संयम का विकास करने का प्रयास करना चाहिए।
सच्चाई के पथ पर चलने वाले को सात्विक प्रसन्नता हो सकती है। एक प्रसन्नता भौतिक सुखों से प्राप्त होती है, जो क्षणिक होती है। पदार्थों से प्राप्त प्रसन्नता क्षणिक और सत्य, अहिंसा, संयम आदि से प्राप्त होने वाली प्रसन्नता आंतरिक होती है, जिसका प्रभाव लम्बे काल तक देखने को मिल सकता है। इसलिए आदमी को अपने आपको आंतरिक प्रसन्न बनाने का प्रयास करना चाहिए। साधना, संयम से प्राप्त सुख आंतरिक शांति प्रदान करने वाले होते है। इसलिए आदमी को अपने भीतर भौतिक प्रसन्नता नहीं आध्यात्मिक प्रसन्नता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा अणुव्रत बहुत व्यापक है।
अणुव्रत जीवन की संयति है। अणुव्रत से जुड़े कार्यकर्ताओं में नशमुक्तता, ईमानदारी और अहिंसा की चेतना जागृत रहे तो अच्छा हो सकता है। अणुव्रत असांप्रदायिक है। इसे कोई भी स्वीकार कर सकता है और अपने जीवन को ऊंचा बना सकता है। अहिंसा यात्रा में भी हम जो तीन बातें-सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की बता रहे हैं, वह भी अणुव्रत की बातें ही हैं। इनके माध्यम आदमी अपने जीवन को बदलने का प्रयास करे तो आत्मा का कल्याण हो सकता है।
आचार्यश्री से मंगल उद्बोधन के पश्चात् मुख्यमुनिश्री ने भी अणुव्रत के कार्यकर्ताओं पर श्रद्धालुओं को प्रेरित करते हुए कहा कि संयम और तप के द्वारा पहले स्वयं पर नियंत्रण रखने का प्रयास करे, उसके उपरान्त दूसरों के नियंत्रण का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने ‘अणुव्रत है सोया संसार जगाने के लिए’ गीत का आंशिक संगान भी किया।
अणुव्रत महासमिति के अध्यक्ष श्री अशोक संचेती ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा अपने वर्ष भर के प्रयासों और कार्यों की संक्षिप्त जानकारी भी प्रदान की। वहीं आचार्यश्री के दर्शनार्थ पहुंचे पांचजन्य के पूर्व संपादक व राज्यसभा सांसद श्री तरुण विजय ने आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहा कि आचार्यश्री आपकी सन्निधि में उपस्थित होकर ऐसा लग रहा है, जैसे मैं भारत के भाग्योदय स्थल पर पहुंच गया हूं।
देश की असली प्रगति के लिए नैतिकता, सत्य, प्रेम, सौहार्द और अहिंसा रूपी असली धाराएं तो आपके यहां संविधान में बन रही हैं। आपकी मंगल सन्निधि में ही मानवता के असली संविधान का निर्माण हो रहा है। यह देश नेताओं और उद्योगपतियों से नहीं, बल्कि आप जैसे प्रभावशाली संतों की वजह से गतिमान है। लगभग 44 हजार किलोमीटर पदयात्रा कर जन-जन को जागृत करने के आपकी दृढ़ इच्छासक्ति में मैं बारम्बार वंदन करता हूं।
कार्यक्रम के अंत में चेन्नई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धर्मचंद लूंकड़ की पुत्रवधू श्रीमती कविता लूंकड़ सहित श्री राजेश संचेती व मीणा भण्डारी से आचार्यश्री से मासखमण (30) की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। इसके अतिरिक्त भी एक 9 की तपस्या तथा दो 8 की तपस्या का प्रत्याख्यान हुआ। 

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