चेन्नई. शुक्रवार को पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ. सुप्रभा के सानिध्य में साध्वी डॉ. हेमप्रभा ‘ने कहा इस संसाररूपी जेल में दो तरह के कैदी हैं, एक जो छूटना चाहते हैं लेकिन नहीं छूट सकते। दूसरे जो छूट सकते हैं लेकिन छूटना नहीं चाहते।
सभी सांसारिक प्राणी छूट सकते हैं लेकिन वे मोह, ममत्व के कारण संसार को छोडऩा नहीं चाहते, उन्हें संसारिक वस्तु और व्यक्तियों में आसक्ति है। आत्मा की अनन्त शक्ति का दुरुपयोग करना आसक्ति है। ज्ञानियों ने जीवों को जागृति के लिए छह सूत्र दिए हैं। यदि इन्हें जीवन में उतार लिया जाए तो संसार की भीड़ में रहकर भी आसक्ति नहीं होगी।
जब भी अपने घर के प्रति आसक्ति के भाव आए तो चिंतन करें कि मुझे यहां से श्मशान भी जाना है। श्मशान वह जगह है जहां पर अफसर-चपरासी सबकी शान समान है। संसार की नश्वरता जानें, विचार करें कि एक दिन मुझे भी जाना है। जो संपत्ति पहले किसी की थी, आज किसी की है और कल किसी और की होगी।
साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा जीवन दो तरह का है-सांसारिक व आध्यात्मिक। संासारिक जीवन में पुण्य का अधिक महत्व है और आध्यात्मिक जीवन में पुरुषार्थ का। प्रत्येक व्यक्ति उन्नति चाहता है लेकिन उसे मिलती नहीं है। यदि सुख मिले तो पुण्य का उदय और धर्म का प्रभाव है और दुख मिले तो पाप का उदय और धर्म का अभाव है।
सांसारिक जीवन में पुण्य से ही यश, कीर्ति, सम्मान, सफलता मिलती है, पुण्य के लिए धर्माराधना करें, शुभ कर्म करें। जब पुण्य उदय में हो तब हम अपने पूर्व संचित पुण्यों का उपयोग कर रहे होते हैं, उस समय यदि धर्माराधना न की जाए तो वे पुण्य भी एक दिन समाप्त हो जाते हैं और पापों का उदय होता है।
पुण्य है तो सबकुछ है। पूर्व की पुनवानी से यह मनुष्य जन्म और अनुकूलताएं मिली है तो इनका सदुपयोग करने से सांसारिक जीवन सुखी होगा और जो भी परिस्थितियां आए उन्हें स्वीकार कर तपस्या, ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आत्मआराधना करें तो आध्यात्मिक जीवन सुखी बनेगा।
जिस प्रकार शालिभद्र ने पुण्य उदय और हरिकेशी ने पाप के उदय में पुरुषार्थ किया। अपने पुण्य और पुरुषार्थ दोनों को बढ़ा दें तो एक दिन पूजनीय बन जाएंगे।
राजगुरुमाता झमकुकंवर के सांसारिक परिवार के बच्चों ने गीतिका द्वारा छत्तीसगढ़ आने की विनती की। विमला बाफना, बेंगलूरु ने विचार व्यक्त किए।