चेन्नई. जिनका नाम भी शुक्ल था और संयम- साधना भी शुक्ल थी, ऐसे महान संत हुए हैं- पंजाब प्रवर्तक शुक्ल चन्द्र जी म.। जिनका जीवन चारित्र का प्रतिमान था। वे ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने न केवल सद् आचरण का उपदेश ही दिया अपितु अपने जीवन में स्वयं भी सदाचरण का सदैव पालन किया। ऐसे महापुरुषों से ही भारतीय संत परंपरा गौरवान्वित है। यह विचार श्रमण संघीय प्रवर्तक उप प्रवर्तक पंकज मुनि ने साहुकारपेट जैन भवन में श्रद्धालु जनों के समक्ष व्यक्त किए। उन्होंने कहा शुक्ल चन्द्र जी म. ब्राहम्ण परिवार में हुआ था। लगभग 13 वर्ष की आयु में ही उनके पिता संसार से विदा हो गए।
माता महताब कुंवर एवं आपके दादा जी के द्वारा लालन-पालन एवं आपका विद्याध्ययन हुआ। युवा अवस्था में पास के गांव की एक लडक़ी से आपकी सगाई हुई। यह शुभ समाचार देने अपने मित्र के घर जब आप पहुंचे तो पता चला कि जिस लडक़ी से मेरी शादी होनी तय हुई है, वह पहले मेरे ही दोस्त से शादी करने वाली थी। मित्र के पिता की मृत्यु होने से यह परिवार कर्जे में डूब गया, जिस कारण लडक़ी वालों ने मेरे मित्र से रिश्ता तोड़ कर मुझसे जोड़ लिया।
यह घटना उनके दिलो-दिमाग को छू गई और उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य जैसे महान व्रत की भीष्म प्रतिज्ञा धारण की। फिर वे महान जैनाचार्य सोहनलाल म.के श्रीचरणों में दीक्षित हुए। आपने साधना काल में उन्होंने अनेक साधकों को संयम साधना में सहयोग दिया। वे फरमाया करते थे जो दूसरों को ऊपर उठाता है जीवन में, वह स्वयं एक दिन जीवन की ऊंचाईयों को प्राप्त कर लेता है। जो दूसरों को गिराने का प्रयास करता है, एक दिन स्वत: ही उसके जीवन का पतन हो जाता है।
अत: गिरते हुओं को गिराएं नहीं अपितु उन्हें ऊंचा उठाने का प्रयास करें आपका जीवन महान बन जाएगा। डॉ. वरुण मुनि ने भी अपनी ओर से श्रद्धा पुष्प अर्पित किए। सहमंत्री भरत नाहर ने बाहर गांव, बाहर बाजार से आए हुए दर्शनार्थी बंधुओं का श्रीसंघ की ओर से अपने मनोगत द्वारा स्वागत किया। लोकेश मुनि ने गुरुभक्ति गीत प्रस्तुत किया।