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ज्ञान वाणी

संघीय आराधना की उत्तम व्यवस्था है परमात्मा की देन: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

संघीय आराधना की उत्तम व्यवस्था है परमात्मा की देन: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. गुरुवार को श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने संघीय उत्तराध्ययन आराधना करवाई। तीर्थेशऋषि महाराज ने प्रभु भक्ति में सोने की तिजोरी में अब कंकर नहीं भरना… भजन श्रवण कराया।

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि परमात्मा प्रभु महावीर ने हमें संघीय आराधना की महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। व्यक्ति अकेला आराधना करे तो अधिकतम तीन योग हो सकते हैं लेकिन संघीय आराधना में तीन करण और तीन योग लगते हैं। संघीय आराधना में व्यक्ति मन, वचन और काया तीनों से एकाग्र होकर भक्ति की जा सकती है, लेकिन एकाकी आराधना करने बैठेंगे तो यह बहुत मुश्किल होता है।

लोकाशाह जयंती के अवसर पर कहा कि बाबा मरुधर केसरी ने अनेक विरोधों के बावजूद यह परंपरा ऐसे समय में शुरू की जब परमात्मा की वाणी का उपयोग धर्म में न होकर सत्ता, पद और संपत्ति प्राप्त करने में होने लगा था। धर्म के रखवाले ही धर्म के नाम पर पाखण्ड में प्रवृत्त हो गए थे।  मरुधर केसरी ने स्मरण कराया कि महापुरुषों के उपकारों को स्मरण करना उनके प्रति कृतज्ञता है।

जिनशासन उस पेड़ के समान है जिस पर पक्षी फल खाने के लिए, रहने के लिए या दूसरे पक्षियों का भक्षण करने को भी आते हैं। लेकिन पेड़ किसी को रोकता नहीं है। पेड़ और उस पर रहनेवाले पक्षियों की सुरक्षा का काम उस पेड़ के रखवालों का है। इसका सदुपयोग भी और दुरुपयोग भी कर सकते हैं। जिनशासन जिनेश्वर देव से चली हुई निर्मल गंगा के समान है, कई मोड़ों पर इसमें बुराईयां भी शामिल हुई लेकिन नमन है उन लोकाशाह जैसे महापुरुषों को जिन्होंने इसे निर्मल बनाने स्वयं का जीवन समर्पित कर दिया। धर्म की धुरी जिन हाथों में थी वे ही पाखण्ड चलाने लगे और सत्ता केलिए धर्म का दुरुपयोग कर भोली जनता को आगम और शास्त्रों के ज्ञान से वंचित कर सर्वत्र श्रद्धा का भय व्याप्त कर दिया।

आमजन मात्र अपनी समस्या का समाधान के लिए उनकी सेवा करने लगे, अध्यात्म से किसी को मतलब ही नहीं रहा। ऐसे समय में लोकाशाह ने सत्य का ज्ञान प्राप्त कर पाखण्डी यतियों का विरोध किया और आगम ज्ञान को साधारण जन को सुलभ कराया। जिनेश्वर वाणी के प्रति आस्था से उन्होंने पाखण्ड जाल से सत्य को बाहर निकाला। उनकी वाणी से प्रेरित हो कई श्रेष्ठियों ने दीक्षा ली और उनके नाम से लोकगच्छ शुरू हुआ।

लोकाशाह से पहले भी आचार्य हरिभद्रसूरी और अभयदेवसूरी जैसे अनेकों संतों ने समय-समय पर सुविधावादी संतों के खिलाफ बहुत कुछ लिखा और जिनशासन को बुराइयों से बचाया। किसी भी जमाने में पांडवों की संख्या कौरवों से कम ही होती है लेकिन फिर भी वे विजयी होते हैं। इसी प्रकार आज के इस विकट समय में हम लोग भी पांडवों के समान धर्मरक्षा को तत्पर हो जाएं तो धर्म को नई ऊंचाईयां दे सकते हैं।

हमें पाखण्डों और सुविधावादियों का पीछा छोड़कर धर्म के सत्य को पहचानना होगा। लोकाशाह की वह प्रयास सशक्त संगठन व्यवस्था के कारण ज्यादा समय तक टिक नहीं सका और पुन: उसी मोड़ पर पहुंच गया। तीर्थ चलाना हो तो तीर्थंकर तो दुबारा नहीं आ सकते लेकिन गंधर्व बनाए जा सकते हैं जो स्वयं का नाम नहीं बल्कि परमात्मा का नाम चलाता है।

लगभग दो सौ वर्ष बाद श्रमणसूर्य मरुधर केसरी मिश्रिमलजी म.सा. ने उस व्यवस्था को संगठन का रूप दिया। उन्होंने ही उस महान विभूति के प्रति समाज की कृतज्ञता के लिए लोकाशाह जयंती की परंपरा चलाई और बताया कि धर्म और आडम्बर एक नहीं अलग-अलग है। आडम्बर संसार के लिए है धर्म के लिए नहीं।

संघ, समाज में स्वयं को नहीं बल्कि परमात्मा को आगे रखकर कार्य करें। आपका अहं इसके लिए जहर के समान है इसे त्याग दें। परमात्मा के सत्य के प्रति निष्ठा ही ताकत देती है। हम एक भी आगम अपने जीवन में उतार लें तो जीवन बदल जाएगा। जिनेश्वर के प्रति निरंतर समर्पित रहें, आस्था ऐसी अडिग हो कि देवता भी नतमस्तक होकर जाएं। हम सभी में राग, द्वेष, माया, लोभ है लेकिन उससे धर्मसंघ को नुकसान न पहुंचाएं।

चौमासी पक्खी पर तीन बातें ग्रहण कर लें जो जीवन में बहुत जरूरी है- बैठना- धर्म के बीज बोना, चलना- उन बीजों को पनपने देना, जलाना- उसके साथ तैयार घास आदी को जला देना। जिसके बिना जीवन में काम चल सकता है उसे छोड़ दें। जो आगे बढऩे, मंजिल पाने में जरूरी हो उसे ही संग्रह करें। जो आपकी श्रद्धा को सुरक्षित नहीं करता है उसे अपने नाखूनों के समान त्याग दें।

धर्मसभा में गौतमलब्धि कलश की बोली लगाई गई। धर्मसभा में शंातिलाल सिंघवी, विनयचंद कोटेचा, मनीषा चोरडिय़ा, उत्तमचंद गोठी, अशोक नाहटा, गौतमचंद गुगलिया, खुशबू बोथरा, मूलचंद सुराणा, अर्हम विज्जा टीम, अष्टमंगल टीम ने उपाध्याय के प्रति अपनी कृतज्ञता भरे विचार प्रस्तुत किए। तपस्वी चंचलबाई बाफणा के 82 उपवास की तपस्या पर चातुर्मास समिति द्वारा सम्मान किया गया।

23 नवम्बर को चातुर्मासार्थ विराजित संतों का इस चातुर्मास का अंतिम प्रवचन का दिन है। 24 नवम्बर को सुबह सामूहिक भक्तामर पाठ के साथ चातुर्मास स्थल से गौतमचंद कांकरिया के निवास पर विहार और मरलेचा गार्डन, किलपॉक में प्रवचन कार्यक्रम होगा।

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