कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा बरस रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आज संगठन की बहुत जरूरत है, चाहे घर हो संघ हो समाज हो या देश हो। हर जगह पर प्रेम प्यार संगठन की आवश्यकता है। आ जाओ – आ जाओ एक बार संप की छाया में संप सदा जिसमें रहता है। उसके नित्य पड़ा रहता है संसार संप की छाया में एकता में संगठन में शक्ति है। जिस घर में संघ परिवार में समाज में देश में एकता रहती है उस संघ समाज को कोई भी तोड़ बिखेर नहीं सकते।
कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्तिथ आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा की कड़ी में नेहरू विद्यालय में महासंघ की ओर से सामूहिक क्षमापना एवं तपस्वीयों का बहूमान कार्यक्रम के अंतर्गत स्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के आचार्य श्री चंद्रजीत विजयजी म. सा . एवं श्वेतांबर तेरापंथ संघ के तपस्वी श्री ज्ञानेंद्रकुमारजी म . सा एवं मूर्तिपूजक संघ विदुषी विद्वान साध्वीजी म.सा. सभी ने क्षमापना एकता पर जोरदार प्रवचन दिया। इसी कड़ी में आराधना भवन से विमलशिष्य वीरेन्द्रमुनिजी म सा ने उपस्थित जनता को उद्बोधन देते हुए कहा कि ” ममता नहीं ज़रा मन में, समता का भंडार है ” ऐसे महावीर प्रभु के चरणों में वंदन बारंबार है।
प्रभु महावीर ने क्षमा को धारण करने के लिये कहा परंतु आज कैसे क्षमा याचना करते हैं। कहा है आज समय कैसी चाल बताऊं सा, मन में कपट और ऊपर से कहे खमाऊ सा। आज हम देखते हैं मन में तो कपट दगा बेईमानी माया छल भरा है – पर ऊपरी मुंह से कहते हैं खमाऊँ सा मिच्छामि दुक्कडम। ऐसे खमत खामना करने का क्या फायदा क्षमा याचना सही रूप में की थी उदायन राजा ने राजा चंद्रप्रद्योतन से वैसी क्षमा याचना करना चाहिये तभी ये दिन मनाना सार्थक होता है।
कवि ने कहा है – प्यार का सामना वार से होता है , नाव का सामना मझधार से होता है। चुमले जो हाथ चांटा मारने वाले का तो नफरत के बदले में प्यार होता है। अर्थात् प्यार करने वालों को कष्ट का सामना करना पड़ता है और नाव के सामने आंधी तूफान का व मझधार में हिचकोले खाती हैं। कभी – कभी नाव डूब भी जाती है पर तूफान वगैरा को भी जो पार कर लेता है। वह नाव पार पहुंच जाती है थप्पड़ मारने वाले के सामने दूसरा गाल कर देना चाहिये। ले भाई इस गाल पर भी थप्पड़ मार दे ऐसा करने से सामने वाले के हृदय में नफरत के बदले में प्यार उमड़ सकता है।
मुनिश्री ने अपने प्रवचन धारा को बहाते हुए कहा कि जहाँ प्रेम एकता भाई चारा नहीं होता उसको कोई भी तोड़ सकता है। एक पिता मृत्यु शय्या पर पड़े हुए थे। उनके 4 पुत्र थे उनको बुलाकर कहा लकड़ी का भारा गठ्ठर लाओ फिर कहा कि इस गठ्ठर को तोड़ो तो पुत्र नहीं तोड़ पाये। तब कहा कि इसकी रस्सी खोलकर एक एक लकड़ी को तोड़ो तो सभी ने फटाफट लकड़िया तोड़ दी। पिता ने कहा कुछ समझे क्या हम भी परम पिता परमात्मा के चार पुत्र है। साधु साध्वी श्रावक श्राविका जब तक लकड़िया गट्ठर में बंधी रही उसे कोई नहीं तोड़ सका और जब अलग अलग कर दिया तो फटाफट तोड़ दी। हमें भी प्रभु ने एक होकर के रहने को कहा अगर एक होकर के रहेंगे तो किसी की भी ताकत नहीं है कि हमें तोड़ सके और अलग होकर के रहंगे तो कोई भी तोड़ सकता है।