चेन्नई. श्रद्धा ऊपर उठाती है। शक्ति संसार में भ्रमण कराती है। श्रद्धाहीन व्यक्ति आत्मघाती है। जो शक्ति सृजनात्मक नहीं है, वह हिंसा और हवस में लग जाती है।
कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि श्रद्धा शक्ति से भी ज्यादा बलशाली है। शक्ति अकेली निष्प्राण है। श्रद्धा परमात्मा से जोड़ती है और शक्ति अहंकार से जोड़ती है।
सबसे पहले आत्मा ध्वंस में अनुपयोगी शक्ति स्वयं से ही बदल लेती है। और मजे की बात है आत्मा अश्रद्धा शक्ति को सदुपयोग की सृजन दिशाओं में प्रवाहित नहीं होने देती। इसका साक्षात प्रमाण रावण है। रावण के पास शक्ति थी, परन्तु धर्म और श्रद्धा के प्रति श्रद्धा नहीं थी, इसलिए रावण कलंकित होकर मरा।
हनुमान के पास शक्ति और श्रद्धा दोनों थी इसलिए वे भगवान की सेवा कर अमर हुए। महाभारत में कर्ण और अर्जुन की लड़ाई बेमेल थी, कहां सूर्य तो कहां बेचारा इंद्र, कर्ण को मुंह को खानी पड़ी वह भी शल्य को सारथी बनाकर। शल्य यानी संकट का संशय। और कर्ण का अर्थ है कान, सारे शक कानों के माध्यम से ही तो पहुंचते हैं।
वही तो द्वार है शंकाओं का, शल्य बार बार यही कहता रहा कि तू अर्जुन को क्या जीतेगा? और कर्ण हारा और शल्य जीता। शल्य बहुत खराब है वह दीमक की तरह आत्माओं को कमजोर कर देती है। इसलिए कहते हैं संतों और परमात्मा पर शंका मत किया करो। शंका बहुत ही खतरनाक है, इससे हमें बचना चाहिए।