चेन्नई. रविवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने परमात्मा प्रभु महावीर के समवशरण का ध्यान और रचना अपने अन्तर में कराते हुए जीवन को शिखर पर पहुंचाने वाली शिखर अनुत्तर देशना की आराधना उत्तराध्ययन सूत्र का श्रवण कराया।
उन्होंने कहा कि जड़ की द्रव्य लेश्या और चेतन की भाव लेश्या होती है। दोनों ही एक दूसरे को प्रभावित करती है। जिसकी जो लेश्या स्ट्रांग होती है, दूसरी उसके पीछे–पीछे स्वत: चलने लगती है। जिस प्रकार परमात्मा ने चंडकोशिक की द्रव्य लेश्या बदलकर उसकी भाव लेश्या को परिवर्तित कर दिया था।
भाव लेश्या कृष्ण से शुक्ल और शुक्ल से कृष्ण हो सकती है। कोई व्यक्ति सकारात्मक सोचते–सोचते भी नकारात्मकता में जा सकता है और कोई नकारात्मकता में से बाहर निकलकर सकारात्मकता की ओर बढ़ सकता है।
हम भी किसी की लेश्या या औरा बदल सकते हैं और कोई दूसरा हमारी औरा को भी बदल सकता है। यह औरा या लेश्या परिवर्तन का गहरा विज्ञान है। परमात्मा के समवशरण में जितने भी जीव जाते हैं उनकी लेश्या परमात्मा की आभा से प्रभावित होकर बदल जाती है।
वहां परस्पर विरोधी और हिंसक जीव भी अपने वैर–भावों को भूलकर परमात्मा महावीर की वाणी का अमृतपान करते हैं। उनके अन्दर के परमाणु परमात्मा केआभा मंडल से बदल जाते हैं।
जब इंद्रभूति परमात्मा के पास आते तो उद्दंडतापूर्वक हैं लेकिन परमात्मा के शब्द सुनते ही इंद्रभूति की लेश्या कृष्ण से शुक्ल हो जाती है और वे विनयशील हो जाते हैं। देवगण परमात्मा को देवलोक से भी वंदन कर सकते थे लेकिन वे उनकी औरा को ग्रहण करने के लिए उनके समवशरण में आकर बैठते हैं।
आज का विज्ञान तो मात्र पदार्थ की ही औरा या लेश्या को रंगों के आधार पर जान पाया है लेकिन परमात्मा तो सजीव और निर्जीव सभी की औरा को रंग, गंध, भाव, रस, स्पर्श सभी के आधार पर इसे पहचानने और बदलने तक का उत्कृष्ट ज्ञान प्रदान करते हैं।
पुद्गल की द्रव्य लेश्या है, इसे लेबोरेट्री में रिसर्च किया जा सकता है। लेकिन भाव लेश्या को लेबोरेट्री में रिसर्च नहीं किया जा सकता।
कपोत, कृष्ण और नील लेश्या धर्म की और तेजो, पद्म और शुक्ल धर्म की लेश्याएं हैं। अधर्म की लेश्या से कभी स्वजनों को न देखें। हमारे घर–परिवार में इनका त्याग हमें करना चाहिए। टीवी देखते हुए, गुस्सा, चिड़ापन और द्वेष की भावना में कभी भोजन न करें। यदि स्वजनों की अधर्म लेश्या हो भी जाए उसे हमें धर्म लेश्या में परिवर्तन करना चाहिए।
यदि कोई गुस्से से देखे या प्यार से, उससे सामने वाला जरूर प्रभावित होता है, उसकी इससे औरा अच्छी या बुरी बन जाती है। हम सब परमात्मा के इस ज्ञान को मात्र जानें ही नहीं इसका प्रयोग भी करें, अपने स्वयं के साथ स्वजनों की लेश्या को भी शुभ लेश्या में बदलें और विकसित करें।
जिस लेश्या में आयुष्य पूर्ण होता है वैसी ही लेश्या में जीव का जन्म होता है। इस अंतिम समय और जन्म के समय के अन्तर मुहूर्त में जीव की लेश्या को बदला जा सकता है।
किसी के कर्मों को तो नहीं बदला जा सकता लेकिन जीव की लेश्या बदलकर उसके अगले जन्म का उसका आयुष्य और स्थिति को बदला जा सकता है, उसके कर्मों के बंध के बाद उसकी बार–बार पुनरावृत्ति होने को रोका जा सकता है।
जिस प्रकार राजा श्रेणिक की लेश्या बदलने के कारण उसका नारकी का आयुष्य कम हो गया। कृष्ण लेश्या का जीव मिथ्यात्वी भी और सम्यकत्वी भी हो सकता है। यह उसकी सोच के आधार पर बदलती है।
हमारे मन के जैसे भाव होते हैं वैसी ही लेश्या होती है, सकारात्मक या नकारात्मक। कृष्ण लेश्यावाला जीव दुस्साहसी, लापरवाह, हिंसा में रस लेनेवाला, झूठ, कपट करने वाला होता है। ऐसी जीव यदि इस जन्म में पूर्व पुनवानी से सफल हो भी जाता है लेकिन अगले जन्म में नरक में जाता है। नील लेश्या वाला ईष्र्या से चलता है।
वह थोड़ा भी सहन करने को तैयार नहीं होता। कहता है कि मुझे ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। वह धूर्त, आलसी, प्रमत्त और स्वार्थी होता है। हर जगह मुझे क्या मिलेगा यह भावना रहती है।
कपोत लेश्या वाला जीव सदैव टेढ़ा सोचता है और टेढ़ा ही चलता है, अशुभ और नकारात्मक ही सदैव बोलता है और स्वयं का दीर्घकालीक नुकसान करता रहता है। ऐसे लोग संघ, समाज और समूह को तोडऩेवाले और दूसरों को भी नकारात्मकता में उलझानेवाले होते हैं।
तेजो लेश्या वाला व्यक्ति धर्मप्रिय, पाप से डरनेवाला, देव–गुरु–धर्म का पालन करनेवाला जीव होता है। वह स्वयं की इंद्रियों का दमन करते हुए धर्म कार्यों में रत रहता है। पद्मलेश्या के जीव में मान, माया, क्रोध आदि विकार हल्के होते हैं। ऐसे व्यक्ति एक क्षण में शांत हो जाते हैं।
शुक्ल लेश्या वाले जीव आर्तध्यान, रौद्रध्यान को पूर्णत: छोड़ देते हैं। वह कभी दु:खों में रोता नहीं, किसी से शिकायत नहीं करता। ऐसा व्यक्ति कोई भी कार्य करते समय संयम और शुभ भावों से युक्त होता है, सदाचारी, जागरूक, अच्छा व्यवहार करने वाला और कम मेहनत में भी ज्यादा प्राप्त करने वाला होता है।
हमें अपना करैक्टर जानना चाहिए और अपनी औरा या लेश्या को बदलना चाहिए। अपनी गलतियों को खोजकर सुधारना है, गलतियों पर रिएक्शन नहीं करना है।
परमात्मा ने बताया कि जो गृहस्थ वास छोड़ता है वह अणगार है। ऐसे अणगार या संत को सर्प के समान अपना निवास करते हुए जीना चाहिए, कहीं भी स्थाई निवास न बनाएं। परमात्मा के सिद्धांतों के विरुद्ध अपने दान की प्रवृत्ति से बचना चाहिए।
उत्तराध्ययन सूत्र और परमात्मा के समवशरण की आराधना अपने घरों में करें और जिन परमात्मा ने अपना ऐश्वर्य दान किया उसे हम ग्रहण करें।
मोक्ष में जाने वाली आत्मा अपना पुण्य धरा पर छोड़कर जाती हैं और उनके पुण्य और लेश्या को ग्रहण करके हम अपना जीवन परिवर्तन कर सकते हैं, सौभाग्य, पुण्य वृद्धि कर सकते हैं।