चेन्नई. गुरुवार को पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम मेमोरियल सेन्टर में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सान्निध्य में साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने प्रवचन में कहा कि संसार के सभी प्राणी बंधनमुक्त होना चाहते हैं लेकिन कौन-से बंधनों से मुक्ति होनी चाहिए? बाह्य बंधनों से या हमारी आत्मा जो जन्मजन्मांतर के पापबंधनों में जकड़ी है उनसे मुक्ति होनी चाहिए।
भगवान महावीर ने कहा है कि हे साधक साधना करनी है तो छोडऩे योग्य को छोडऩा और पाने योग्य को पाना होगा। यदि त्यागने योग्य को प्राप्त करने का प्रयास करोगे तो संसार से मुक्ति नहीं होगी, बल्कि और उलझते जाओगे।
उन्होंने कहा कि पाप, आस्रव को त्यागना और संवर, निर्जरा को प्राप्त करना चाहिए। उन्होंने कर्मों की निर्जरा के लिए बारह प्रकार के तप बताए हैं जिनमें से छह बाह्य और छह अभ्यन्तर तप हैं। पहले ध्यान तप के बारे में कहा कि चित की गति को किसी प्रभाव, वस्तु या व्यक्ति पर केंद्रित या एकाग्र करना ध्यान है। ध्यान को शुभ या अशुभ हो सकता है।
प्रशस्त या अप्रशस्त हो सकता है। किसी कार्य को करने में बिना ध्यान के हम असफल हो जाते हैं। आध्यात्मिक और सांसारिक सभी क्रियाओं में ध्यान महत्वपूर्ण है। यदि अपनी आत्मा को अनादीकाल के बंधनों से मुक्त करना है तो चित की वृत्ती पर ध्यान केंद्रित करना होगा। मानव मन की चार अवस्थाएं हैं- विक्षिप्त मन, यातायात या अस्थिर मन, उत्कृष्ट और शुक्लध्यान मन।
यदि अशुभ ध्यान होगा तो आत्मा पतन की ओर जाएगी, शुक्ल और धर्म ध्यान होगा तो उत्कर्ष की ओर बढ़ेगी। प्रभु महावीर ने ध्यान की दो अवस्थाएं बताई हैं- शुभ और अशुभ। आर्त और रौद्र ध्यान अशुभ तथा शुक्ल और धर्मध्यान शुभ हैं। जब मनुष्य ध्यान की शुभ अवस्था को जानेगा तब ही शुभ की ओर बढक़र अपने कर्मों की निर्जरा कर सकेगा।
साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशु’ ने सुख विपाक सूत्र विवेचन में कहा कि यदि कर्मबंधों का मूल कारण ही दुखदायी हो तो सुख कैसे प्राप्त हो सकता है। सुखविपाक सूत्र- जो कर्म सिद्धांत को मिटाने वाला है। भगवान महावीर ने कहा है कि राजनीति में यदि धर्म का समावेश हो जाए तो वह राज्य के विकास को और अधिक ऊंचाई प्रदान करता है, लेकिन यदि धर्म में राजनीति का समावेश हो जाए तो वह राजा व प्रजा दोनों के लिए दुखदायी और पतन का कारण बन जाता है।
धर्मनीति दुश्मनों को झुकाती है प्रेम से और राजनीति दुश्मनों को झुकाती है तलवार से। राम ने भरत को राज्य सौंपते हुए धर्म नीति का पालन करने की शिक्षा दी जो सभी के लिए कल्याणकारी बना।
प्रवचन के पश्चात बड़ी संख्या में सामूहिक तेल के पच्चखान हुए, बड़ी संख्या में तेले तप की आराधना हुई। धर्मप्रश्नोत्तरी, दोपहर में लोगस्स जाप तथा सिद्धितप की आराधना की गई।
29 जुलाई से 2 अगस्त तक ज्ञान संस्कार शिविर और 31 जुलाई को आचार्य आनन्दऋषि जन्म व महा.उमरावकंवर महाप्रयाण दिवस पर विशेष कार्यक्रम होंगे। धर्मसभा में चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों सहित राजस्थान, छत्तीगढ़ से अनेकों श्रद्धालु धर्मसभा में उपस्थित रहे।