चेन्नई. मां एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से शरीर, मन व आत्मा रोमांचित हो उठते हैं। एक अतुलनीय दिव्य आन्नद की जनित स्पन्दन की अनुभूति होती है। इस आनंद की अनुभूति ही की जा सकती है शब्दों से व्याख्या नहीं हो सकती।
जन्म लेने के साथ ही सबसे पहले हम मां को ही देखते हैं। भूमिष्ठ होते ही सबसे पहले परिचय मां से ही होता है । मां की गोद में ही शिशु जीवन का पहला पाठ पढ़ता है। मां की अंगुली थाम कर ही उसका विकास के पथ पर चलना शुरू होता है।
मां सदा अपनी संतान को सहारा देती है। मां का पवित्र स्नेह प्रतिदान में कुछ नहीं चाहता। दुख शोक से जर्जरित मानव के लिए मां ही आशा की किरण होती है।
उक्त उद्गार मुनि रमेश कुमार ने ट्रिप्लीकेन तेरापंथ भवन में आयोजित हुआ परिवार सप्ताह के अन्तर्गत सोचो अगर मां न होती विषय पर व्यक्त किये।
मां किस तरह से अपनी संतानों पर ममत्व के साथ लालन पोषण करती है इसे विस्तार से समझाते हुए वर्तमान युग में माता- पिता के साथ सम्मान जनक व्यवहार हो उनकी सेवा आदि में जागरूकता रख कर उनके बुढ़ापे में सहारा बनना पुत्रों का कर्तव्य होता है।