Share This Post

ज्ञान वाणी

व्यक्ति आरम्भ और परिग्रह से मुक्त बने : आचार्य श्री महाश्रमण

व्यक्ति आरम्भ और परिग्रह से मुक्त बने : आचार्य श्री महाश्रमण
*नौ दिवसीय उपासक प्रशिक्षण शिविर का हुआ प्रारम्भ*
 
  *देश भर से 103 सम्भागी बने सहभागी*
आदमी के जीवन में आरम्भ और परिग्रह है| ये दोनों चीजें जब तक उसके जीवन में जुड़ी रहती हैं, तो अध्यात्म साधना में बाधक हो सकती हैं| आरम्भ यानि हिंसा और परिग्रह यानि संग्रह मूर्च्छा| आदमी जब तक इनको छोड़ नहीं पाता है, तो वह वीतराग धर्म को भी सुन नहीं पाता|  इनको जाने बिना वह साधु भी नहीं बन पाता और केवलज्ञानी भी नहीं बन पाता है, उपरोक्त विचार माधावरम स्थित महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहे|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि आध्यात्मिक साधना में इन दोनों का त्याग आवश्यक है| गृहस्थ के ये दोनों जुड़े हुए हैं, पर साधु इन दोनों के पूर्णतया त्यागी रहते हैं|  गुरूदेव तुलसी ने प्रतिक्रमण के हिन्दी अनुवाद में लिखा हैं कि श्रावक आरम्भ और परिग्रह से युक्त रहता है एवं साधु सर्व हिंसा के त्यागी होते हैं| पर साधना की दृष्टि से दोनों में समानता है|  आचार्य भिक्षु ने कहा है कि साधु और श्रावक दोनों रत्नों की माला है| एक बड़ी है और एक छोटी हैं|  एक के मणके बड़े है और एक के मणके छोटे हैं, त्याग की अपेक्षा से|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि गृहस्थ के मन में सदैव यह चिन्तन रहे कि मैं कब आरम्भ मुक्त बनुंगा| मुनि अहिंसा शूर है| श्रावक अपने जीवन यापन के लिए भोजन बनाता है, तो वह साधु को उसमें से लेने के लिए भावना भाता है, लेकिन वह साधु के निमित से भोजन नहीं बनाता है| वैसे ही वह अपने उपयोग के  वस्त्र, पात्र, औषध, मकान इत्यादि के लिए भी साधु को भावना भाता है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि परिग्रह के कारण हिंसा भी हो सकती है, पर कुछ समय के लिए इनसे मुक्त भी हो सकता है जैसे श्रावक सामायिक करता है या प्रवचन सुनता है, तो वह परिग्रह मुक्त बन सकता है और धर्म श्रवण कर सकता है|  साधु को भी प्रवचन देने से निर्जरा का लाभ होता है|  साधु व्याख्यान देने में श्रम से न बचे| आगम की वाणी प्रवचन का श्रृंगार है|
हिंसा और परिग्रह  कार्य और कारण का जोड़ा है|  गृहस्थ हिंसा कम करे, पानी की सीमा करे, जमीकन्द के त्याग करे, बारह व्रत स्वीकार करें और भी पैसे, जमीन, कपड़े इत्यादि का भी सीमांकरण करे|  रात्रि भोजन का त्याग किया जा सकता हैं| इस प्रकार से हिंसा और परिग्रह का सीमांकरण, अल्पीकरण किया जा सकता हैं| आरम्भ और परिग्रह दोनों आध्यात्म साधना में बाधक हैं|
उपासक शिविर प्रारम्भ के अवसर पर के शिविरार्थीयों को उपासक उपसम्पदा स्वीकार कराते हुए आचार्य श्री ने कहा कि उपासक खुब अध्ययन करे,  ज्ञानार्जन करे| मुख्य मुनिश्री महावीरकुमारजी ने गुरू की महिमा को बताते हुए साधक को साधना में संलग्न बने रहने की प्रेरणा दी| उपासक शिविर के संयोजक श्री जयन्तीलाल सुराणा ने उपासक किट निवेदित की| तिरूपुर से समागत संघ ने गीतिका के द्वारा आराध्य की अभिवंदना की| तेयुप संगठन मंत्री श्री महेन्द्र मरलेचा ने आज से प्रारम्भ जैन विधा कार्यशाला की सूचना दी|

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar