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वीर लोंकाशाह की 609 वीं जन्मजयन्ति में मनाई गयी

वीर लोंकाशाह की 609 वीं जन्मजयन्ति में मनाई गयी

श्रमण परम्परा के दिव्य नक्षत्र क्रान्तिकारी वीर लोंकाशाह की 609 वीं जन्मजयन्ति श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ तमिलनाडु के तत्वावधान में स्वाध्याय भवन, साहूकारपेट, चेन्नई में श्रद्धा भक्ति दिवस के रुप में मनाई गयी | वरिष्ठ स्वाध्यायी बन्धुवर श्री विनोदजी जैन ने महासती लीलाबाई के प्रेरणास्प्रद प्रवचनों का उल्लेख करते हुए विस्तृत रुप से अनुप्रेक्षा की | मध्यान्ह मे आलोयणा, रत्नाकर पच्चीसी आदि स्तोत्रों की सामूहिक स्तुति की गयी |

श्रावक संघ तमिलनाडु के कार्याध्यक्ष आर नरेन्द्रजी कांकरिया ने गुजरात के अरहटवाडा ग्राम में पिता हेमाशाह व माता गंगाबाई दफ्तरी के यहां जन्म लेने वाले श्रमण परम्परा जिनशासन के दिव्य नक्षत्र क्रांतिवीर वीर लोंकाशाह का जीवन परिचय देते हुए बताया कि जिनशासन की शुद्ध परम्परा के प्रचारक के रुप में लोंकाशाह के सही पुरुषार्थ करने हेतु उनका नाम युगों-युगों तक अमर हो गया |

श्रमण वर्ग में पनप रही शिथिलता व जिन-पूजा व जिन-भक्ति के नाम पर बढ़ते हुए अनावश्यक आडम्बरों को रोकने व शुद्ध धर्म के पालन हेतु लोंकाशाह ने प्रभु महावीर के सिद्धांतों व पंच महाव्रतों का संदेश जन-जन तक पहुंचाने का पुरुषार्थ किया | उनमें तीव्र बुद्धि,तत्वों के विवेचना व सुन्दर मोती जेसी लेखनी जैसे विशिष्ट गुण थे | उन्होंने आगमों का लेखन कर जिनशासन में विशिष्ट योगदान दिया |

 पूर्ण अकिंचन वीतराग की प्रतिमा पर बहुमूल्य आभूषण सजाना,सचित पदार्थों से उनकी अर्चना करना आगम सम्मत नही हैं | उन्होंने साबित किया कि जहां हिंसा हैं वहां धर्म नहीं हो सकता हैं | धर्म के नाम पर हिंसाजनक क्रियाएं नहीं करनी चाहिए |

लोंकाशाह लिपिकार होने के साथ साथ जैन आगमों के मर्मज्ञ विद्वान श्रावक रहें | लखमशी भाई जो उनको यतियों की मान्यता समझाने आये थे पर लोंकाशाह द्वारा शास्त्रीय प्रमाण देने पर सही व सच्चे मत की पुष्टि होने पर उन्होंने भी सही मान्यता को स्वीकार कर लिया |

गुजरात के चार क्षेत्रों सूरत, अरहटवाडा,सिरोही व पाटनसे पैदल संघ यात्रा के दौरान अतिवृष्टि होने के कारण अहमदाबाद रुके,उन तीर्थ यात्रियों को लोंकाशाह से विचार विनिमय करने का अवसर मिला | तीर्थ यात्रियों ने लोंकाशाह से धर्म के सही स्वरुप को समझा और मान्यता की सत्यता को स्वीकार किया व लोंकाशाह की प्रेरणा से प्रेरित होकर अनेक व्यक्ति मुनि बनने के लिए तैयार हुए व उस समय अहमदाबाद से हैदराबाद की ओर विहार कर रहे श्री ज्ञानमुनिजी के पास 45 व्यक्तियों ने जैन भागवती दीक्षा ली | इस प्रकार विक्रम संवत 1527 वैशाख शुक्ल तृतीया को लोंकाशाह गच्छ की नींव पड़ी |

जिनशासन की शुद्ध परम्परा के प्रचार करते हुए दिल्ली से अलवर पहुँचे, वहां अट्टम तेले के पारणे के समय धर्मद्वेषी ईष्र्यालुं विरोधी व्यक्ति ने उन्हें पारणे की सामग्री में विष मिलाकर दे दिया पर जीवन भर जिनशासन का अमृत पान कराने वाले वीर लोंकाशाह ने बिना द्वेष भाव के समाधि पूर्वक संथारा मरण स्वीकार कर लिया | उनका समाधिपूर्वक मरण 74 वर्ष की वय में विक्रम संवत 1546 चैत्र शुक्ल ग्यारस को हुआ | जिनशासन में आपका नाम पुरुषार्थ व योगदान के लिए हमेशा के लिए अमर हो गया | स्थानकवासी व तेरापन्थ परम्परा उस महापुरुष की हमेशा ऋणी रहेगी और वह प्रकाश-दीप की तरह अपने दिव्य व भव्य आलोक से आलोकित करता रहेगा |

स्वाध्यायी श्री कांतिलालजीतातेड़ दीपकजी योगेशजी श्रीश्रीमाल श्रावक संघ- तमिलनाडु के कोषाध्यक्ष के.प्रकाशचंदजी ओस्तवाल व गौतमचन्दजी मुणोत विनोदजी जैन ने अष्ठ प्रहर-चार प्रहर चातुर्मासिक पक्खी पर्व पर पौषध व्रत-संवर की साधना की | लीलमचन्दजी बागमार रुपराजजी सेठिया आदि श्रावकों की उपस्थिति प्रमोदजन्य रही | सायंकालीन प्रतिक्रमण बादलचन्दजी बागमार ने कराया | उम्मेदराजजी प्रेमजी ज्ञानजी बागमार, सज्जनराजजी बोथरा, मोहितजी छाजेड इंदरचंदजी कर्णावट आदि श्रावकों की उपस्थिति रही |

 प्रेषक :- श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ- तमिलनाडु 24/25 बेसिन वाटर वर्क्स स्ट्रीट, साहूकारपेट, चेन्नई 600 001 तमिलनाडु

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