चेन्नई. टी.नगर में बर्किट रोड स्थित माम्बलम जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने बुधवार को प्रवचन में कहा इस जगत में भोगों का त्याग कर वैराग्यता प्राप्त की जा सकती है। वैराग्यता से वीतरागता स्वयमेव प्राप्त हो जाती है। वीतरागता प्राप्त करने का प्रथम पायदान है त्याग। त्याग दो प्रकार से किया जाता है- लाचारी से एवं स्वयमेव स्वेच्छा से।
छोडऩा और छूटना दोनों एक ही मंजिल के दो अलग-अलग रास्ते हैं। अपने हाथों से धन का दान करने को भी त्याग माना जाता है। चोरों द्वारा चुराया जाना भी एक तरह का त्याग ही होता है। दान से आनंद और चोरी हो जाने पर दुख होता है। खाने-पीने के साधन होने पर भी उनको छोडऩा त्याग माना जाता है। भूखे भिखारी को त्यागी नहीं कहा जा सकता। त्यागी की प्रशंसा होती है भोगी की नहीं।
मुनि ने कहा युवावस्था में दीक्षित होने की भावना जाग्रत होती है तो लोगों के बहकाने पर वृद्धावस्था का इंतजार नहीं करना चाहिए। जन्म, जरा, मृत्यु एवं रोग इन चार अवस्थाओं में पीड़ा असह्य होती है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। अत: समय रहते सुकर्म कर लेने चाहिए। कल-कल करते काल निकट आ जाता है और अपनी तमन्ना मन ही में रह जाती है।
समय को बर्बाद करने वाला मानव स्वयं बर्बाद हो जाता है। संसार एक रंगमंच के समान है। प्राणी एक कलाकार की तरह जगत में आता है और उसकी अच्छी अदाकारी अर्थात सुकर्म की उसके बाद प्रशंसा एवं बुरी अदाकारी की निंदा होती है। संचालन मंत्री महेंद्र गादिया ने किया। इस धर्मसभा में उपाध्यक्ष डा. उत्तमचंद गोठी, पूर्व मंत्री पारस जैन, सहमंत्री प्रकाश कोठारी समेत सभी पदाधिकारी भी उपस्थित थे।