चेन्नई. एगमोर स्थित डीएलएएफ अपार्टमेंट्स में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा जब कोई बच्चा मल या अपनी नाक खाता है तो उससे हम कहते हैं, छि:-छि: गंदी है और हम उसे समझाते हैंं। बालक जब कुछ नीचे गिरा हुआ उठाकर खाता है तब उसे खाने से मना करते हैं।
जब कोई नशे की हालत में गंदी नाली में पड़ा हुआ दिखता है तो उसके ्रप्रति करुणा व दया के भाव उमड़ते हैं। शराब के नशे में बालक और पत्नी को गालियां दे रहा है तब हमारे मन में उसके प्रति कैसे भाव पैदा होते हैं। सोचते हैं पागल है अविवेकी है। बालक अबोध होता है उसे रस्सी और सांप का भेद मालूम नहीं होता, वह अक्षम्य है लेकिन आप जब टीवी पर अनैतिक दृश्य देखते हैं, अशोभनीय संवाद सुनते हैं तब आपको अपने आपसे घृणा क्यों नहीं होती।
आप तो पढ़े-लिखे हैं, अच्छे-बुरे, हित-अहित के बारे में क्यों नहीं सोचते। बालक का तो मात्र हाथ खराब हो रहा था लेकिन टीवी देखते एवं अशोभनीय संवाद सुनते और अनैतिक दृश्य देखते समय आपको स्वयं से घृणा क्यों नहीं होती। आपने तो अपने विचार गंदे कर लिए, आंखें दूषित कर ली, मन विकृत कर लिया और संस्कार दूषित कर लिया। भगवान महावीर ने विवेक का सहारा लिया, ज्ञान की चरम ऊंचाई पर पहुंच गए। ज्ञान को वीतराग विज्ञान बना लिया।
मोहम्मद खिलजी ने अविवेक का हाथ पकड़ा तो हिंसा की खाई में जा गिरा। हंस और बगुला दोनों का रंग समान है लेकिन हंस मोती चुगता है और बगुला मछली पकड़ता है। राम विवेक पर चले तो भगवान बन गए और रावण नरक का पात्र बना। कोयल और कौवा दोनों काले हैं लेकिन कोयल बबूल के पेड़ पर बैठकर कूक रही है, मधुर गा रही है जबकि कौवा गुलाब पर बैठकर कांव-कांव कर रहा है।
अविवेक और वासना का रास्ता गटर का है जबकि विवेक का रास्ता अमृत का है। दुश्मन जब दुश्मनी निभाता है तो प्राण छीन लेता है और व्यसन, शराब, अनैतिक आदत पड़ती है तो सद्गुण वृद्धि व सद्गति का मार्ग रुक जाता है। अब आपको सोचना है कि राम बनना है या रावण।