चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में साध्वी डॉ.उदितप्रभा ने कहा विद्वत्ता की शोभा अहंकार से नहीं नम्रता से है। प्रभु कहते हैं विनय ही धर्म का मूल है। जिसने विनम्रता को अपना लिया, संसार के सभी गुण अपना लिए।
अहंकारी व्यक्ति कितना ही संतों और साक्षात् भगवान के पास चला जाए लेकिन कुछ हासिल नहीं कर पाता, फुटबाल की तरह ठोकरें खाता रहता है। कुछ सीखने के लिए किसी का बनना पड़ता है, समर्पित होकर चरणों में झुकना पड़ता है। संसार में छोटे-छोटे जीवों में भी अहंकार का भाव होता है।
पुष्प अपनी सुंदरता और रंग पर गुमान करता है, वह नहीं जानता कि उससे ज्यादा सुंदर कितने ही सुंदर पुष्प सूखकर मिट्टी में मिल चुके हैं। हम गुमान किस पर कर रहे हैं। दान करते हैं तो अपना नाम लिखवाते हैं, अहंकार के साथ अज्ञानावस्था में जीते हैं। न जाने कितने ही दिग्विजय रावण, सिकन्दर जैसे मिट गए, इसलिए जीवन में नम्रता होनी चाहिए।
विनय का गुण मानव का शृंगार है, इससे सभी जगह आदर-सम्मान प्राप्त होता है। विनय ही धर्म का मूल, सच्चा विकास और प्रकाश है।
साध्वी डॉ. इमितप्रभा ने कहा कि भावनाओं के वेग में आत्मा अनादीकाल से इस संसार में गोते खा रही है और भावनाओं की शुद्धता से यह संसार से पार भी हो सकती है। जब भावनाओं का चिंतन और मनन कर रहे हैं तो उस समय आस्रव द्वार बंद हो जाते हैं। किसी विषय के यथार्थ तत्वों का सूक्ष्मातीसूक्ष्म चिंतन करना, उसकी गहराई में डूब जाना अनुप्रेक्षा है। प्रभु कहते हैं कि संसार की अनित्य और असारता का चिंतन करेंगे तो कर्मों की निरंतरता रुक जाए।
प्रभु कहते हैं कि भौतिक साधन कोई भी सुख शांति नहीं देंगे। संसार में अकेला आया और अकेला ही जाएगा। यह अज्ञानता है कि जब तक स्वार्थपूर्ति होती है समझते हैं कि वह मेरा है। जो अपना होता है वह कभी जाता नहीं और जो जाता है वह अपना नहीं। इस संसार में कोई अपना नहीं है। जो अपना है वह सर्वदा साथ रहता है।
संसार में रहते हुए अपना कर्तव्य निभाना है और चिंतन करें कि जिन्हेें हम अपना समझ रहे हैं वे अपने नहीं, मेरी आत्मा ही मेरी है, वही साथ में आई थी और वही साथ जाएगी। 10 सितम्बर को आचार्य आत्माराम का जन्म दिवस मनाया जाएगा। आचार्य जयमल जयंती पर पंचदिवसीय कार्यक्रमों में 11 को प्रथम दिन जयमल जाप होगा।