क्रमांक – 24
. *तत्त्व – दर्शन*
*🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार*
*👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।*
*🔅 अजीव तत्त्व*
*✨अजीव के प्रकार*
*♦️पुद्गलास्तिकाय*
*👉 विज्ञान में जिसे मैटर (matter) कहा गया है, जैन दर्शन में उसे पुद्गल की संज्ञा दी गई है। पुद्गल को परिभाषित करते हुए लिखा गया है- ‘पूरणगलनधर्मत्वात् इति पुद्गलः’। पुद्गल शब्द में दो पद हैं-पुद् और गल। पुद् का अर्थ है-मिलना और गल का अर्थ है-गलना, टूटना। जो द्रव्य प्रतिपल-प्रतिक्षण मिलता-गलता रहे, बनता-बिगड़ता रहे, टूटता-जुड़ता रहे, वही पुद्गल है। पुद्गल की दूसरी परिभाषा है- ‘स्पर्शरसगन्धवर्णवान् पुद्गलः’ अर्थात् स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण से युक्त द्रव्य पुद्गल है। इस प्रकार पुद्गल एक ऐसा द्रव्य है, जो खण्डित भी होता है और पुनः परस्पर सम्बद्ध भी होता है। पुद्गल की सबसे बड़ी पहचान यह है कि उसे छुआ जा सकता है, चखा जा सकता है, सूंघा जा सकता है और देखा जा सकता है। स्पर्श, रस, गंध, वर्णयुक्त होने के कारण एकमात्र पुद्गल द्रव्य रूपी है, मूर्त है। संसार में जितनी भी वस्तुएँ दिखलाई देती हैं, वे सब पुद्गल हैं।*
*क्रमशः ………..*
*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*
विकास जैन।