आचार्य जयमलजी का 312वां जन्मदिवस मनाया
ब्रह्मचर्य की साधना से जीवन का नन्दनवन महकता है
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में आचार्य जयमलजी की जयंती पर पंचदिवसीय कार्यक्रमों में तीसरे दिन गुणगान दिवस तप, त्याग और सामायिक के साथ मनाया और आचार्यश्री के जीवन चरित्र का गुणगान किया। इस अवसर पर जयमल हाउजी प्रतियोगिता व साहुकारपेट महिला नवयुवति मंडल द्वारा वर्तमान परिदृश्य पर नाटिका का मंचन किया। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। धर्मसभा में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ ने कहा कि इस संसार में स्वयं को देखना, जानना सबसे कठिन है।
हम प्राय: दूसरों को देखते हैं बल्कि स्वयं की अच्छाईयों और कमियों को नहीं देखते। आचार्य पद पर होते हुए भी आचार्य जयमलजी अपने जीवन में सदा आत्मसाधना और परोपकार में तल्लीन रहे। 18वीं सदी में उन्होंने जो धर्म-पौधे लगाए थे, आज वृक्ष बनकर हमें शीतल छांव प्रदान कर रहे हैं। उनके विशिष्ट समुद्र जैसे जीवन के जलकण रूपी गुणों का वर्णन हमारी जिह्वा से करना असंभव है।
उनके जन्म के समय बुराईयों का बोलबाला था, शासक-प्रशासक सुरा-सुंदरी में डूबे थे। आचार्यश्री ने अपने व्यक्तित्व के बल पर सारा वातावरण बदला और ज्ञान प्रकाश फैलाया। उन्होंने अज्ञानी, हिंसक, अधर्मी, पाखंडी और चोर-डाकुओं को भी शांत कर धर्म मार्ग पर प्रवृत्त किया। वे महासाधक थे उनकी लेश्या सदैव शुभ तेजोलेश्या से पद्म, पद्मलेश्या से शुक्ललेश्या की ओर बढ़ी। हमें भी अपनी लेश्या को बदलना है, अशुभ से शुभ की ओर बढऩा है।
साध्वी डॉ.उदितप्रभा ‘उषाÓ ने कहा कि आचार्यश्री ने प्रथम बार संयोग से गुरु-प्रवचन सुने और दीक्षा धारण कर लिया। हम वासना से साधना की ओर आए तो आत्मा का उत्थान और आलोकित और शक्ति का उद्भव होता है। जो ब्रह्मचर्य की साधना से शक्ति, सुख और सौभाग्य से जीवन का नन्दनवन महकता है। ऐसी प्रखर साधना के महापुरुष आचार्य जयमलजी का 312वां जन्मदिवस मना रहे हैं।
उन्होंने आदर्शों के प्रति समर्पण से उच्च आदर्शों का जीवन निर्माण किया। वे वासना से साधना की ओर आए और तप से आत्मा को उज्जवल बनाया। तपाराधाना में समस्याओं से कभी घबराए नहीं। उन्होंने यतियों द्वारा संयम अवहेलना की बातें सुनकर भगवतीसूत्र द्वारा सत्य का साक्षात्कार कराया और धर्म मार्ग पर ले आए।
जैसलमेर, बीकानेर आदि क्षेत्रों में ढ़ोंगी यतियों के घोर विरोध पर भी आठ दिनों तक भूखे प्यास रहकर भी आगे बढ़े और जन-जन तक अहिंसा, धर्म का संदेश दिया, अनेकों क्षेत्रों को साधु-संतों के विचरण के लिए खोला। राजा, महाराजा, ठाकुरों को भी धर्मोपदेश देकर व्यसनमुक्त कर समाज सुधार किए। उनका नाम ही मंत्र की तरह है जिससे आज भी संकट बाधाएं टल जाती है।
ऐसे आचार्यश्री जिनका वंदन करने को देव भी आते थे। जहां महापुरुषों के जन्म, दीक्षा और देवलोकगमन हो सभी स्थल तीर्थस्थान बन जाते हैं। आचार्यश्री ने बड़ी साधुवंदना काव्य रचना की, सवा लाख पद्य बनाए। उनकी जयंती पर प्रेरणा लें, जीवन में अप्रमत्त रहें, कुछ संकल्प जरूर ग्रहण करें तो जीवन महान बन जाएगा।
साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि आचार्यश्री के जीवन में दो शब्द समर्पण और संकल्प थे। समर्पण अहंकार को विनम्रता में बदलकर आध्यात्मिक शक्ति उद्घाटित करता है। सांसारिक जीवन में भी प्रेम से श्रद्धा और श्रद्धा से समर्पण भाव आता है। समर्पण में क्यों शब्द और बुद्धि का प्रयोग नहीं होता। दूसरा शब्द है संकल्प।
जिसमें किंतु, परंतु नहीं होता। जो संकल्प कर लिया, पूरा किया जाता है। आचार्य सम्राट के जीवन में दोनों ही शब्द थे। एक बार प्रवचन सुनत ही गुरु के प्रति समर्पित हो गए। उनके जीवन में 5 संकल्प महत्वपूर्ण थे। पहला-ब्रह्मचर्य ग्रहण करना, दूसरा- तब तक दीक्षा की आज्ञा नहीं मिले अन्न-पानी का त्याग, तीसरा-जब तक प्रतिक्रमण याद न हो बैठना नहीं, चौथा- गुरुदेव का सानिध्य रहे तब तक एकांतर तप किया 16 वर्ष तक, पांचवां- गुरुदेव के देवलोकगमन पर संकल्प लिया कि कभी लेटकर सोना नहीं, जो 52 वर्ष तक चला इसके साथ ही अनेकों विविध प्रकार के तप, साधनाएं की। समर्पण और संकल्प शक्ति से व्यक्ति कहां से कहां पहुंच जाते हैं। ऐसा समर्पण और संकल्प हमारा भी देव, गुरु, धर्म पर हो जाए तो जीवन उत्कृष्ट बन जाए।
साध्वी उन्नतिप्रभा ने अपने भजनों से आचार्यश्री को श्रद्धांजलि अर्पित की। धर्मसभा में इंदौर से पधारी मिडब्रेन एक्टिवेशन शिविर की प्रशिक्षक चित्रा जैन सहित अनेकों वक्ताओं ने आचार्यश्री के जीवन पर अपने विचार रखे। चातुर्मास समिति के समस्त पदाधिकारी एवं इंदौर, छत्तीसगढ़, नागौर, मध्यप्रदेश, से श्रद्धालु उपस्थित रहे।
जयमल जयंती पर पंचदिवसीय कार्यक्रमों में 14 सितम्बर को दोपहर 2 बजे प्रतियोगिता परीक्षा, 14-15 सितम्बर को 5 से 15 आयुवर्ग के बच्चों के लिए मिडब्रेन एक्टिवेशन शिविर, रैकी और औरा प्रशिक्षण शिविर होगा।