पेरमबाकम, तिरुवल्लूर (तमिलनाडु): जन-जन के मानस को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे सुसंकल्पों से पोषित करते और लोगों के जीवन में आध्यात्मिकता की नवीन चेतना का जागरण करते जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ निरंतर गतिमान हैं। भारत के उत्तरी हिस्से में जहां इस समय जबरदस्त ठंड पड़ रही है, वहीं इस दक्षिण भारत का मौसम बिल्कुल अलग है। यहां तो प्रतिदिन बादलों के आने के बाद भी गर्मी और उमस बरकार है। धूप की तीव्रता तो हमेशा जेठ की दोपहरी जैसी महसूस होती है। ऐसे प्रतिकूल मौसम के बावजूद भी महातपस्वी आचार्यश्री के ज्योतिचरण लोगों के पथ को प्रशस्त करने के लिए निरंतर गतिमान हैं।
शनिवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ किलचेरी से मंगल प्रस्थान किया। ऊंचे-ऊंचे इमारतों की जगह अब बड़े-बड़े वृक्ष और खेत दिखाई दे रहे थे। वृक्ष और खेत इस बात की पुष्टि कर रहे थे कि अब अहिंसा यात्रा शहरों से निकल ग्रामीण क्षेत्रों में गतिमान है। आचार्यश्री मार्ग के आने वाले ग्रामीणों को अपने आशीष से अभिसिंचन प्रदान करते हुए लगभग सात किलोमीटर का विहार कर पेरमबाकम नगर में प्रविष्ट हुए। स्थानीय श्रद्धालुओं संग उपस्थित अन्य जैन एवं जैनेतर समाज के लोगों की आस्था देखते ही बन रही थी। सभी आचार्यश्री के दर्शनार्थ और स्वागतार्थ उत्सकुता के साथ खड़े थे। आचार्यश्री ने जैसे ही नगर में प्रवेश किया, जयघोष से पूरा नगर गूंज उठा। आचार्यश्री यहां स्थित गवर्नमेंट गल्र्स हायर सेकेण्ड्री में पधारे।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में आचार्यश्री की उपस्थिति में असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने पेरमबाकम के लोगों को आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से अपने जीवन को उन्नत बनाने के लिए उत्प्रेरित किया। इसके उपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में वाणी का बहुत महत्त्व होता है। इसलिए आदमी को सबसे पहले यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि हमारी वाणी कैसी हो, उसका उपयोग कैसा होना चाहिए। वाणी के संदर्भ में कुछ बातें बताई गईं हैं, जिनके माध्यम से आदमी अपनी वाणी का सुन्दर उपयोग कर सकता है।
वाणी के लिए पहली बात बताई गई है कि बिना कहे, बिना पूछे नहीं बोलना चाहिए। आदमी को कम बोलने का प्रयास करना चाहिए। बिना पूछे अनावश्यक रूप से बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को मितभाषी बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को कम बोलना अथवा दिन में कभी-कभी मौन भी रहने का प्रयास करना चाहिए। मौन रखना वाणी का संयम हो सकता है और अनावश्यक रूप से बोलना भी नियंत्रित हो सकता है। इसलिए आदमी को सबसे पहले मितभाषी बनने का प्रयास करना चाहिए।
कोई पूछे अथवा कोई बोलने को कहे तो आदमी को झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को यथार्थ वाणी का प्रयोग करना चाहिए। झूठ बातों से आदमी अपना विश्वास खो देता है। इसलिए आदमी को सत्य बोलने का प्रयास करना चाहिए। सच बोलने वाले को कभी कठिनाई का समाना भले करना पड़ सकता है, किन्तु उसका दूरगामी परिणाम अच्छा हो सकता है। आदमी को यथार्थवादी बनने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को भाषा की कला भी होना चाहिए। वाणी में मधुरता और बोलने की मिठास किसी भी आदमी को अपने वश में कर सकती है। वाणी को एक वशीकरण मंत्र के समान भी बताया गया है। एक गले की मधुरता अलग बात होती है और भाषा की मधुरता अलग बात होती है। आदमी को अपनी भाषा में अच्छे शब्दों का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही अपनी वाणी को यथार्थवादी, मितभाषी और मिष्टभाषी बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के पश्चात् अहिंसा यात्रा के संकल्प भी प्रदान किए। जिसे स्थानीय लोगों सहित उपस्थित छात्राओं व शिक्षकों ने भी सहर्ष स्वीकार किया। पेरमबाकमवासियों को श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा प्राप्त करने का भी सुअवसर प्राप्त हुआ।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के पश्चात् श्रीमती गुणवत्ती दुगड़, श्री सुनील दुगड़, श्री संदीप दुगड़, श्री महावीर दुगड़ ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति श्रीचरणों में अर्पित की। दुगड़ परिवार की महिलाओं ने गीत के माध्यम से आचार्यश्री का स्वागत किया। पेरमबाकम जैन समाज के श्री लालचंद बम्ब ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बालक लक्ष्य और बालिका लहर ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति देकर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।