चेन्नई. वस्तु के ज्ञान को विवेक कहते हैं। बिना इसके मनुष्य पशुतुल्य है। भारतीय संस्कृति से दूर होते ही ऐसा लगता है जैसे विनय ने विदाई ले ली हो और विवेक का विहार हो गया है। इंसान के रूप में दिखाई देने वाले हैवान बहुत मिलेंगे पर इंसानियत को प्राप्त किए हुए मनुष्य दुनिया में कम ही दिखाई देते है।
ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि विवेक से धर्म बढ़ता है। विवेक मुक्ति का साधन है। अनंत जीव विवेक के माध्यम से आराधना करते हुए मुक्ति को प्राप्त हुए है। विवेक तो हृदय के अंतर से उत्पन्न हुआ है।
अग्नि अंश मात्र भी नहीं है और फूंक लगा दी जाए तो कोई फायदा नहीं है। वैसे ही विवेक बिना धार्मिक उन्नति के कुछ नहीं है। साध्वी अपूर्वा ने तीर्थंकर वासुपूज्य के बारे में बताते हुए कहा कि वसु शब्द का प्रयोग आगमकारों ने सोने की मुहरों और लक्ष्मी के अर्थ में किया। श्रद्धापूर्वक परमात्मा का स्मरण करने से हमें द्रव्य और भावलक्ष्मी की प्राप्ति होती है।