चेन्नई. जिस युग में मानवता छुआछूत की घटनाओं से सिसक रही थी, जिस काल खण्ड में नारी को पांव की जूती समझा जाता था, जिस समय इंसानों को दास प्रथा के तहत खरीदा और बेचा जाता था उस युग में वर्धमान प्रभु महावीर ने एगा मणुस्सा जाई मनुष्य जाति सब एक है। ये नारा दिया था। समाज सुधार के अनेक अभियान उन्होंने चलाए। मानव को पुन: सम्मान व सद्भाव से जीना सिखाया। यह विचार-प्रवचन दिवाकर डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में आयोजित प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा प्रभु महावीर जब सन्यासत नहीं थे अर्थात् राज महलों में ही रह रहे थे उस समय उन्होंने देखा किसी व्यक्ति के कान में सीसा डाला जा रहा है गर्म-गर्म। पूछने पर मालूम हुआ कि यह शुद्र है, इसने गलती से मन्दिर के पास खड़े रह कर वेद – मंत्र सुन लिए हैं। इसलिए उसे दंड दिया जा रहा है। यह सुनकर महावीर की चेतना चित्कार उठी अरे! यह कैसी धर्म की व्याख्या इंसान ने अपने मन माफिक बना डाली? यह कैसा जाति का अभिमान की हम ऊंचे ये नीचे? मानव-मानव में यह भेद कैसा? एक सेठ होकर शोषण कर रहा है, दूसरा गुलाम बनकर पशु से भी बदतर जिंदगी जीने को मजबूर है। उन्होंने देखा – यज्ञ के नाम पर गाय, बैल, घोड़ों की बलि दी जा रही है। इस हिंसा के ताण्डव को धर्म का जामा पहनाया जा रहा है। नारी के साथ अत्याचार हो रहा है।
ऐसी अनेक घटनाओं को देखकर राजकुमार वर्धमान विचार करते हैं- इन सब को राजसत्ता के द्वारा सुधार पाना संभव नहीं। तब वे सन्यास पथ पर कदम बढ़ाते हैं। साढ़े 12 वर्षों तक कठोर साधना कर ब्रह्मज्ञान पाते हैं। तब वे मानव जाति को जीने का सम्यक ज्ञान प्रदान करते हैं। आज के युग में मानव ने अणु-परमाणु बम, न्यूक्लियर और हाइड्रोजन बम इतने बना लिए हैं कि एक शोध कर्ता के अनुसार सत्तरह बार विश्व को खत्म किया जा सकता है। परंतु विश्व शांति चाहिए तो प्रभु महावीर के उपदेशों को अपनाना ही होगा। आज फिर वर्तमान को वर्धमान की आवश्यकता है। श्रीसंघ के मंत्री शांति लाल लुंकड़ ने बताया कि प्रतिदिन प्रात: 8.15 बजे से श्रीमद् उत्तराध्ययन जी श्रुतदेव की आराधना मूल पाठ एवं अर्थ के साथ रुपेश मुनि फरमा रहे हैं। साथ ही महावीर कथा का वाचन भी श्रोताजन भक्ति व श्रद्धा से श्रवण कर रहे हैं।