चेन्नई. ताम्बरम में साध्वी धर्मलता ने कहा कि लोभ दुख एवं संतोष सुख है। लोभ द्रोपदी के चीर की तरह लम्बा है। जब दुशासन ने चीर खींचा तो समझ नहीं पाया कि साड़ी बीच नारी है कि नारी बीच साड़ी है। लाभ के साथ लोभ बढ़ता चला जाता है। इसलिए लोभ पाप का बाप बताया है।
कहा भी है कि श्मसान, अग्नि, पेट, तृष्णा और आकाश का गड्ढा कभी भरता नहीं। कहते हैं जितनी कम होगी मांग की मात्रा उतनी सफल होंगी जीवन यात्रा। यह लोभ महापाप हैं। ताप और शाप है। लालची व्यक्ति बेच देता हैं ईमान को।
भक्तामर ोत के माध्यम से कहा कि पारस लोहे को सोना तो बना देता है पर अपने समान नहीं बना सकता। परन्तु प्रभु तो आत्मा को महात्मा ही नहीं, अपने समान परमात्मा बना देता है।
साध्वी ने कहा कि लोभ के आने पर मान, मर्यादा, प्रतिष्ठा, संवेदना, सुख-शांति, लज्जा, प्रीति, सरलता, आदि सारे गुण समाप्त हो जाते हैं।
बच्चे, बूढे, युवा, संपन्न, विपन्न, सबल, निर्बल, राजा-महाराजा, सबके दिलों में यह लोभ सांप की तरह फुफकार रहा है। संपूर्ण जगत इसके चंगुल में हैं।