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लोगस्स के जप से मिटता है पाप, ताप, संताप : मुनि सुधाकर

लोगस्स के जप से मिटता है पाप, ताप, संताप : मुनि सुधाकर

शनिवार को होगा विशिष्ट अनुष्ठान

 

माधावरम्, चेन्नई : श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट के तत्वावधान में आवस्स्यं सुत्र पर आधारित व्याख्यानमाला के दूसरे दिन मुनि सुधाकरजी ने चतुर्विशतिस्तव लोगस्स, पर विवेचन करते हुए कहा, जैन आगमों में स्तवन स्तुति को मंगल कहा है। भक्ति योग से शक्ति योग का जागरण होता है, एवं तीर्थंकरों के स्तवन और स्तुति से वीतराग भाव का विकास होता हैl

लोगस्स जीवन निर्माण का स्तवन है, इसमें महान आत्माओं की स्तुति की गयी हैl तीर्थंकरों की स्तुति से गोत्र कर्म का बंधन होता हैl भाव शुद्धि से युक्त देव, गुरु, धर्म की आराधना करना ही भक्ति हैl उससे अस्तित्व बोध आत्मगुणों का विकास एवं वृत्तियों का परिष्कार होता हैl

मुनि श्री ने लोगस्स के महत्त्वता को उजागर करते हुए कहा – यह अभिमंत्रित वाणी एवं वीतराग वाणी है, महान आत्माओं का गुणगान है एवं सकल जैन समाज द्वारा मान्य हैl लोगस्स के पाठ से पारिवारिक मानसिक समस्याओं का समाधान होता है l लोगस्स में सात पद है l सात के अंक का भी अलग महत्व है, सात समंदर, इंद्रधनुष के सात रंग, सप्तऋषि मंडल, सात आश्चर्य, सात के अंक के महत्व को उजागर करते हैं। लोगस्स एक रहस्यमय अलौकिक विशिष्ट रचना है लोगस्स के जाप से पाप, ताप, संताप का नाम होता है एवं समाधि का विकास होता हैl

मुनि श्री नरेशकुमारजी ने सुमधुर गीत का संगान करते हुए कहा कि समता की साधना से अध्यात्म का विकास होता हैl हमें विभिन्न परिस्थितियों में समभाव के चेतना का विकास करना चाहिये।

प्रवीण सुराणा ने बताया कि शनिवार साय: 7 से 8 बजे पंच गंठी (गांठ) प्रबल पंचपरमेष्ठी आत्मरक्षा कवच महामंत्राधिराज नमस्कार महामंत्र पर आधारित दिव्य मंत्र का अनुष्ठान होगा यह मंत्र नकारात्मक शक्तियों से हमारा बचाव करता है।

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