चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम मेमोरियल सेन्टर में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सान्निध्य में साध्वी डॉ. इमितप्रभा ने कहा भगवान महावीर ने राग और द्वेष को आत्मा के शत्रु बताया है। स्व के निमित्त ये आत्मा के साथ निरंतर चले आ रहे हैं और अनादिकाल से इन्हें पोषण-पुष्टि भी दी जा रही है।
दु:ख के चार कारणों में दो हैं-प्रिय का वियोग और अप्रिय का संयोग। आपकी प्रिय वस्तु या व्यक्ति आपसे दूर हो जाए या आपका अप्रिय व्यक्ति या वस्तु के संग रहना पड़ जाए तो दुख होता है। प्रभु कहते हैं प्रिय और अप्रिय चाहे वह जो कुछ भी हो, सब एक दिन जाएगा, कुछ भी शाश्वत नहीं रहेगा।
खुशी और दुख दोनों ही आते और जाते हैं। तीसरा है बीमारी का समय जिसमें व्यक्ति दुखी हो आर्तध्यान करता है व नया कर्मबंध करता है। अंतिम है भोगों की इच्छा। अतीत की याद और भविष्य की फरियाद कर दुखी होता है। मनुष्य को पांच इन्द्रियों के विषय दुख ही देते हैं इनसे सुख होने वाला नहीं।
आज भौतिक साधनों से मनुष्य घर-परिवार से ही दूर हो गया है तो ईश्वर से तो बहुत दूर हो गया है। इस आर्तध्यान से बचने के लिए अन्तर में चिंतन करें कि मैं किसी का नहीं और कोई भी मेरा नहीं। ऐसी भाव धारा हो तो आर्तध्यान कम और धर्मध्यान शुरू होगा।
साध्वी डॉ. हेमप्रभा ने कहा राग-द्वेष कर्म के बीज हैं। सुख विपाक सूत्र विवेचन में यदि कर्मबंधों का मूल कारण ही दुखदायी हो तो सुख कैसे प्राप्त हो सकता है।
उन्होंने समाज में प्रचलित प्रथाओं और उनके वास्तविक अर्थों को समझाया। गृहस्थ जीवन के बारे में लोगों की सोच में आए परिवर्तनों का मर्म समझाते हुए कहा कि आज का गृहस्थ जीवन वाह, आह और तबाह में सिमट गया है। नए रिश्तों में लोगों की पसंदगी का नजरिया बदल रहा है। जो लोग हाइट और व्हाइट के पीछे चलते हैं उनकी जिंदगी टाइट और घरों फाइट होती है।
समाज में विवाह संस्कार जैसी परंपराओं के मापदंड बदल गए हैं। जिसका वास्तविक अर्थ है विशिष्टता के साथ वहन करना। अंत में धर्म प्रश्नोत्तरी तथा सिद्धितप की आराधना हुई।
शनिवार को दोपहर में धार्मिक परीक्षा प्रतियोगिता, रविवार के दोपहर 2 से 4 बजे तक बच्चों का संस्कार शिविर का आयोजन होगा। 29 जुलाई से 2 अगस्त तक ज्ञान संस्कार शिविर और 31 जुलाई को आचार्य आनन्दऋषि जन्म व महा.उमरावकंवर महाप्रयाण दिवस पर विशेष कार्यक्रम होंगे।