कांचीपुरम. जिले के पालूर गांव स्थित गवर्नमेंट आदि द्राविड़ हायर सेकंडरी स्कूल में विराजित आचार्य महाश्रमण ने कहा मनुष्य जीवन को धर्ममय बनाने के लिए सात बातें बताई गई हैं। इनमें पहली है पात्र में दान देने का भाव होना चाहिए। आदमी के मन में घर पर आए साधु के पात्र में दान देने की भावना हो। दूसरी है गुरु, आचार्य, साधु-संतों के प्रति विनय का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए।
उनका अभिनन्दन, वंदन यथोचित रूप में रखने का प्रयास करना चाहिए। तीसरी है सभी प्राणियों के प्रति दया-अनुकंपा का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी सोच रखने का प्रयास करना चाहिए कि मेरे कारण किसी भी प्राणी को कष्ट न होने पाए। चौथी है न्यायपूर्ण निर्णय और न्यायपूर्ण वर्तन करने का प्रयास करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में न्याय से नहीं हटना चाहिए। न्याय के संदर्भ में कहा गया है कि आदमी को मौत की स्थिति बन जाए तो भी न्याय के पथ से हटना नहीं चाहिए।
धीर पुरुष न्याय पथ से विचलित नहीं होते। पक्षपात नहीं होना चाहिए। न्याय के लिए अडिग रहने का प्रयास करना चाहिए। पांचवीं है सभी को दूसरों का हित करने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों का हित करने वाले का स्वयं ही हित हो सकता है। किसी का बुरा करने का प्रयास न करें। छठी है सभी को धन, पद, प्रतिष्ठा, सम्पत्ति आदि किसी का घमंड नहीं करना चाहिए। किसी भी चीज का घमंड न करें। सातवीं है संतों या सज्जनों की संगति में रहने का प्रयास करें। संतों की संगति से अच्छे संस्कार आते हैं और जीवन अच्छा बनता है। गृहस्थ अपनी सीमा में धर्म का आचरण करें और जीवन को सुफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।