कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा राखी का त्यौहार अपनी वृत्ति-प्रवृत्ति बदलने एवं राक्षसी वृत्ति त्यागने का पर्व है। हैवान मत बनो इन्सान बनो। माता-बहनों को बुरी नजर से बत देखो। माता-पिता और भारतीय संस्कृति की रक्षा करना तुम्हारा ही कर्तव्य है।
हमें यह त्यौहार प्रेरणा देने आया है कि हमारा दूसरा जन्म हो सके। इस त्यौहार के तीन नाम हैं-श्रावणी पूर्णिमा, नारियली पूनम एवं रक्षाबंधन। इसे ब्राह्मणों का त्यौहार कहते हैं। ब्राह्मण का अर्थ जातिवाद नहीं बल्कि ब्रह्म का आचरण करने वाला होता है यानी ब्रह्म में रमने की भावना जाग्रत करने वाला।
हमारे जीवन में चार त्यौहार आते हैं-रक्षाबंधन, दशहरा यानी क्षत्रियों एवं वीरों का त्यौहार, दीपावली अर्थात वैश्यों का त्यौहार एवं होली यानी शूद्रों का त्यौहार। यह त्यौहार रक्षा संदेश लेकर आया है कि तुम ऊर्जा पुरुष हो। तुम्हारे में असीम ऊर्जा भरी हुई है उसे यह प्रकट करता है।