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मोह रूपी पहाड़ को अध्यात्म रूपी वज्र से करें चूर-चूर: अध्यात्मवेत्ता महाश्रमण

मोह रूपी पहाड़ को अध्यात्म रूपी वज्र से करें चूर-चूर: अध्यात्मवेत्ता महाश्रमण
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): सोमवार को आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र में निर्मित ‘महश्रमण समवसरण’ में समुपस्थित श्रद्धालुओं को महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘सम्बोधि’ ग्रन्थ के माध्यम से श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में दो प्रकार के तत्त्व होते हैं-जीव और अजीव। इन दोनों तत्त्वों के सिवाय दुनिया में कुछ भी नहीं है और इनके बिना दुनिया कुछ नहीं है।
एक चैतन्य है, जिसमें आत्मा है, वह जीव है और जिसमें आत्मा नहीं, वह निर्जीव होता है। प्राणी मात्र के जीवन के लिए पदार्थों की आवश्यकता होती है। पदार्थों के बिना जीवन सम्भव नहीं है। खाने के लिए पदार्थ की आवश्यकता, पहनने के लिए पदार्थ की आवश्यकता, रहने के लिए पदार्थ की आवश्यकता, सोने के लिए पदार्थ की आवश्यकता।
जीवन के हर पहलू के लिए पदार्थ की आवश्यकता होती है। पदार्थ के उपयोग के बिना जीवन चलना असम्भव है। पदार्थ हैं-शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श। इनसे युक्त ही पदार्थ हो सकता है, इनसे विहीन कोई पदार्थ नहीं सकता।
पदार्थों के प्रति आदमी के मन में आसक्ति भी आ जाती है। फिर एक परंपरा अथवा कड़ी के रूप में आगे बढ़ती है। ‘सम्बोधि’ में कहा गया है कि आदमी को जब किसी पदार्थ की आवश्यकता होती है तो उस पदार्थ के प्रति व्यक्ति की आसक्ति बढ़ने लगती है और जब आसक्ति बढ़ती है तो वह मोह का रूप लेने लगती है। जब मोह प्रबल होता है तो आदमी उस पदार्थ को प्राप्त करने का प्रयास करने लगता है।
पदार्थ की प्राप्ति हो जाती है तो फिर उस पदार्थ के सुरक्षा की चिंता होने लगती है। जब वह पदार्थों का सुख भोगने लगता है तो उसके प्रति उसकी आसक्ति और बढ़ने लगती है। उस पदार्थ के और अधिक प्राप्ति के लिए उसे धनार्जन की आवश्यकता होती है और जब पदार्थ में आसक्त होकर धनार्जन का प्रयास होता है तो फिर धनार्जन में शुद्धि की बात गौण हो जाती है और व्यक्ति का विवेक चला जाता है।
जब आदमी का विवेक चला जाता है तो आदमी की मानसिक शांति क्षीण हो जाती है। आदमी को मोह रूपी पहाड़ को धीरे-धीरे क्षीण करने का प्रयास करना चाहिए। जैसे पहाड़ों को धीरे-धीरे काटकर राजपथ का निर्माण किया जाता है, उसी प्रकार आदमी मोह रूपी पहाड़ को धीरे-धीरे काटकर मोक्ष का राजपथ बनाने का प्रयास करे। बूंद-बूंद से कोई घड़ा भर सकता है तो बूंद-बूंद से वह घड़ा खाली भी हो सकता है।  मोह रूपी पहाड़ को अध्यात्म रूपी वज्र से चूर-चूर करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने स्वरचित ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ के माध्यम से श्रद्धालुओं को बालक नथमल और मुनि तुलसी के प्रथम मिलन के प्रसंग का वर्णन सुनाया। आगामी वर्धमान महोत्सव के लिए गदग समाज की ओर से बैनर का लोकार्पण पूज्य सन्निधि में किया गया। इस मौके पर श्री सुरेश कोठारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
ममता बाई मोहितजी गांधी ने 30 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। इसके अलावा अनेकानेक श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री से अपनी-अपनी धारणानुसार अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।
निरंतर हो रहे तपस्याओं के प्रत्याख्यान को देखकर ऐसा लग रहा है मानों पूरा बेंगलुरु महातपस्वी की मंगल सन्निधि प्राप्त कर तपस्वी बनने की राह पर अग्रसर हो चुका हो। लोग लम्बी-लम्बी तपस्याओं की भेंट आचार्यश्री के चरणों समर्पित करने को लालायित नजर आ रहे हैं।  
                  🙏🏻संप्रसारक🙏🏻
            *सूचना एवं प्रसारण विभाग*
         *जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*

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