चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्रसूरीश्वर ने कहा कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए बंधनों से मुक्ति आवश्यक है। मुक्ति पांच प्रकार की होती है। दुख मुक्ति, पाप मुक्ति, देह मुक्ति, कर्म मुक्ति और मोह मुक्ति। जो लोग धर्म की अराधना करते है वे लोग मोक्ष के लिए यानि मुक्ति के लिए करते है। संसार के सुख वैभव अस्थायी है।
स्थायी सुख को पाने लिए मोक्ष का रास्ता अपनाना पड़ता है। ऐसा कोई काल नहीं है जब संसार में स्थायी सुख हो। हम सुख की चाहत से अधिक दुख से मुक्ति चाहते है। मोक्ष प्राप्ति के लिए बाहर की आवाज को सुनना बंद करना पड़ता है। आत्मा की आवाज जब तक सुनाई नहीं देती, मोक्ष के मार्ग पर चलना संभव नहीं है। पांच प्रकार की मुक्ति मनुष्य भव में ही संभव है।
लेकिन इसके लिए मनुष्य भव को समझना जरूरी है। दुख का मुख्य कारण है आत्मा की अज्ञानता। जब तक आत्मा को नहीं पहचानोगे दुख से मुक्ति संभव नहीं। आत्मा हमारे सबसे नजदीक रहती है। उसे पहचानने का प्रयत्न कोई नहीं करता है। हमें बाहरी दुनिया के बजाय भीतरी दुनिया को पहचानने का प्रयास करना चाहिए। मुक्ति का मतलब होता है बंधन से मुक्त होना।
आत्मा का बोध मिले, ज्ञान मिले इसके लिए गुरु की आवश्यक है। गुरु दयालु होता है। परमात्मा की कृपा गुरु के माध्यम से हमें पहुंचती है। जब तक स्वीकार का बोध नहीं रखोगे, प्रतिकार का मार्ग बंद नहीं होगा। सबको सुखी बनना है, शांति का जीवन चाहिए तो प्रतिकार का मार्ग छोडऩा होगा। स्वीकार सुख है, शांति है। जब आपके जीवन में स्वीकार की भूमिका बन जाएगी, परम शांति का अनुभव करोगे।