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मोक्षप्राप्ति धर्म की आखिरी सीढ़ी: आचार्य वर्धमान सागरसूरी

मोक्षप्राप्ति धर्म की आखिरी सीढ़ी: आचार्य वर्धमान सागरसूरी

पहले जागरण शिविर में उमड़ा जनसैलाब

चेन्नई. वेपेरी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ के तत्वावधान एवं आचार्य वर्धमान सागरसूरी के सान्निध्य में प्रथम जागरण शिविर का आयोजन हुआ। मुख्य अतिथि मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विनीत कोठारी थे। इस मौके पर आचार्य विमलसागरसूरी ने अनेक संवेदनशील विषयों पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा समाज में धन और धनवानों का नहीं, गुण और गुणवानों का प्रभुत्व होना चाहिए। गुण संपन्न श्रीमंत ही समाज का भला कर सकते हैं। धन का प्रदर्शन कम किया जाना चाहिए और गुणों की पूजा होनी चाहिए। गुण ही मानव को महान बनाते हैं। बाहर की खूबसूरती और चकाचौंध में भी अवगुण छिप नहीं सकते और फटे-पुराने चिथड़ों में भी गुणों की महक आए बिना रह नहीं सकती।

उन्होंने कहा न्याय-नीति का मार्ग ही सुख-शांति का मार्ग है। बेईमानी का धन तो सबकुछ बर्बाद कर देता है। मोक्षप्राप्ति धर्म की आखिरी सीढ़ी है। जो आत्मा-परमात्मा और मोक्ष की बातें करते हैं। उनको सर्वप्रथम नैतिकता की चिंता करनी चाहिए। नैतिकता धर्म का प्राण-तत्व है। जो नैतिक नहीं होता वह धार्मिक भी नहीं हो सकता।

न्याय-नीति की बातें केवल धर्मग्रंथों में सुरक्षित रखने या उपदेशों तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए। वे जीवन में उतरनी चाहिए। आचार्य ने जोर देकर कहा अनीति और अन्याय का धन बुद्धि की भ्रष्टता लाता है। संस्कारों का नाश करने के अलावा वह धन पाप के मार्ग पर ले जाता है। ऐसे जीवन में सुख-शांति की आशा करना भी बेकार है। ऐसा पैसा बीमारियों में स्वाह हो जाता है।

यह सच है कि खाओगे अन्न वैसा होगा मन और जैसा होता है धन वैसा ही होता है जीवन। इससे पूर्व दीप प्रज्वलन एवं मंगलाचरण हुआ। अंत में मंत्र एवं स्तोत्रयुक्त मांगलिक के साथ शिविर का समापन हुआ। इस मौके पर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया।

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