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मित्रता को नष्ट कर देती है माया: आचार्य मुक्तिप्रभ सागर

मित्रता को नष्ट कर देती है माया: आचार्य मुक्तिप्रभ सागर

चेन्नई. रायपुरम स्थित सुमतिनाथ जैन भवन में विराजित आचार्य मुक्तिप्रभ सागर ने कहा आज संसार में मायाचरण का बोलबाला है। हरेक क्षेत्र में सच्चाई का दुष्काल है। वैसे सच्चाई का स्तर ऊंचा जरूर होता है लेकिन अंदर केवल मिश्रण होता है। मानव की उम्र व शक्ल ब्यूटीपार्लर की मेहरबानी से छिप जाती है।

आजकल हर इनसान का जीवन सिद्धांत सा बन गया है। कपट की झपट से पूरा संसार एक-दूसरे से भयभीत है। कपट से काम तो लिया जा सकता है लेकिन किसी को अपना नहीं बनाया जा सकता। माया से मित्रों को गंवा दिया जाता है।

अपनी प्रतिष्ठा को दांव से हार जाते हैं। विश्व के इस मनोविज्ञान को स्पष्ट करते हुए भगवान महावीर ने कहा है कि कपटी का संसार में कोई मित्र नहीं होता। मनोविज्ञान का कहना है कि जिस इनसान के मन में वक्रता व धूर्तता के विचार होते हैं और जो रात-दिन षड्यंत्रों का जाल बुनता रहता है उसकी नसें व आंतें सिकुड़ जाती हैं।

शरीर में रक्तसंचार ठीक से नहीं होता, दिल की नसों में खून के धब्बे जम जाते हैं। ब्रेन हेमरेज व हार्ट अटेक जैसी बीमारी से घिर जाता है। इस मायावी राक्षस को वश में करने का एक ही उपाय है सरलता।

जिसके हृदय में कोई आंटी-घूंटी नहीं है वह व्यक्ति भद्रिक परिणामी है वह कभी माया का शिकार नहीं होता। इसलिए सरल व सहज बनें एवं कपट को भगाएं।

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