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माया-मृषा करने वाले को सताता है चिन्ता, भय और पश्चाताप: आचार्यश्री महाश्रमणजी

माया-मृषा करने वाले को सताता है चिन्ता, भय और पश्चाताप: आचार्यश्री महाश्रमणजी

कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में वर्ष 2019 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नित्य की भांति शुक्रवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ से ‘सम्बोधि’ प्रवचनमाला की एक मनका को आगे बढ़ाया और उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी कई बार उत्पथगामी बन जाता है। आदमी के व्यवहार में ईमानदारी हो, प्रमाणिकता हो तो मानना चाहिए कि आदमी सत्पथ का पथिक है।

‘सम्बोधि’ में बताया गया है कि माया-मृषा का प्रयोग करने वाले की क्या गति होती है? माया-मृषा करने वाले के जीवन में तीन स्थितियां पैदा होती हैं। पहली स्थिति होती है कि माया-मृषा का प्रयोग करने वाले को पहले चिन्ता हो जाती है। चिन्ता इसलिए होती है कि कहीं झूठ बोला पकड़ा गया तो क्या होगा। इस बात को लेकर उसके दिमाग में चिंता के भाव उभरते हैं तो उसकी मानसिक शांति भी भंग हो जाती है।

चिन्ता को चिता के समान कहा गया है। दोनों में मात्र एक बिन्दु फर्क होता है और दोनों ही जलाने वाली होती हैं। चिता शरीर को जला देती है और चिन्ता दिल, दिमाग को। माया-मृषा का प्रयोग करने वाला आदमी चिंताग्रस्त रहता है। वहीं ईमानदारी, प्रमाणिकता, सत्यता, पारदर्शी व्यक्ति ऐसी चिन्ताओं से मुक्त रहता है।

दूसरी बात बताई गई है कि माया-मृषा करने वाले को भय भी होता है। कोई झूठ बात बोले और कई बार मौके पर पोल खुल जाए अथवा उसकी झूठी बात पकड़ी जाए तो वह इस भय से हमेशा भयभीत रहता है। माया-मृषा करने वाले के मन में भय की स्थिति भी बनी रहती है। कई बार झूठ बोलने से पहले ही भय की स्थिति उसके चेहरे पर उभर आती है। तीसरी बात बताई गई कि माया-मृषा करने के बाद व्यक्ति के भीतर पश्चाताप का जागरण होता है। वह सोचता है, मैं झूठ क्यों बोला। मुझे सच बोल देना चाहिए था। चिन्ता, माया और पश्चाताप से बचने के लिए आदमी को ईमानदारी, नैतिकता, प्रमाणिकता और पारदर्शिता का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। माया-मृषा से बचने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे प्रख्यात शिक्षाविद् प्रबन्धन गुरु, चायना-यूरोप इंटरनेशनल स्कूल के संयुक्त अध्यक्ष एवं अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार व केलाॅग स्कूल आॅफ मैनेजमेंट के भूतपूर्व डीन डाॅ. दीपक सी. जैन को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा और मंगल आशीष प्रदान की।

आचार्यश्री का आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त डाॅ. जैन ने महासभा द्वारा आयोजित आचार्य महाप्रज्ञ स्मृति व्याख्यानमाला कार्यक्रम के अंतर्गत अपने विचारों से लोगों को अवगत कराया। इस कार्यक्रम का संचालन महासभा के महामंत्री श्री विनोद बैद ने किया। महासभा के अध्यक्ष श्री हंसराज बैताला ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। महासभा के पूर्व अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र चोरड़िया ने डाॅ. दीपक सी. जैन का परिचय प्रस्तुत किया। नित्य की भांति आज भी अनेकानेक तपस्याओं का प्रत्याख्यान हुआ।

इनमें मुख्यतया श्री इंदरचंद धोका ने 29, श्री चंपकभाई मेहता ने 28 व श्रीमती सुमन बाफना ने 28 की तपस्या का प्रत्याख्यान कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। इस दौरान तुलसी महाप्रज्ञ फाउण्डेशन द्वारा एक पत्रिका का लोकार्पण भी पूज्य सन्निधि में किया गया।

तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन आज से

‘संस्था शिरोमणि’ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आज से त्रिदिवसीय तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन का आयोजन होगा। इस आयोजन में देश व विदेश की लगभग 595 सभाओं से लगभग हजार की संख्या से अधिक प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है। इस आयोजन के लिए आज से ही आचार्य भिक्षु सभागार में आचार्यश्री के पावन आशीर्वाद से रजिस्ट्रेशन काउन्टर का शुभारम्भ हुआ। प्रतिनिधियों के पहुंचने का क्रम शुक्रवार से ही जारी है।

🙏🏻संप्रसारक🙏🏻
सूचना एवं प्रसारण विभाग
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा

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