एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि पर्यूषण हमें मानसिक की शुद्धि और भावों को निर्मल रखने का संदेश देता है। मानसिक शुद्धि तो शुभ विचार और शुभ भावों से होती है। अध्यात्म चिंतन करने से मन शुद्ध होता है। चिंतन व चिंता ये दो शब्द है जिसमें धरती और अंबर जितना बड़ा अंतर है। चिंतन आत्मा को ऊध्र्वगामी बनाता है और चिंता अधोगामी बनाती है। चिंता से मन मतिष्क में तनाव पैदा होता है। चिंता की गर्मी से ज्ञान तंतु नष्ट हो जाते हैं जबकि शुभ चिंतन से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो जाता है।
अशांत मन भी शांत और प्रफुल्लित हो जाता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने अंतकृत दशांग सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि यदि हमारी धर्म भावना सुदर्शन की तरह सुदृढ, सच्ची श्रद्धा व भक्ति और अपने आराध्य के प्रति संपूर्ण समर्पण हो जाए तो हम बड़ी विघ्न बाधाओं का सामना सरलता से कर सकते हैं और उनमें विजय भी प्राप्त कर सकते हैं। सम्यक श्रद्धा व आस्था पूर्ण समर्पण की भावना और अपने आराध्य के प्रति असीम विश्वास बड़े पुण्य से ही जीवात्मा को प्राप्त होता है। जिनके पास महान संकल्प और दृढ़ मनोबल होता है वही सबसे बड़ा बलवान होता है। जिंदगी की सबसे बड़ी जंग आत्मबल के भरोसे ही जीती जाती है।