वेलूर. यहां आरकाट स्थित एसएस जैन स्थानक भवन में विराजित साध्वी मंयकमणि ने बताया कि कर्म दो प्रकार के होते हैं-निधत कर्म एवं निकाचित कर्म। निधत कर्म की त्याग, तपस्या एवं शुभ कर्मों से ही निर्जरा हो जाती है। इसी प्रकार निकाजित कर्म में तीन योगों से बंधन होता है, जिनको भोग बिना छुटकारा नहीं मिल सकता।
अत: मानव को सोच-विचार कर कर्म करने चाहिए। क्रोध में मानव अपनी आत्मा व शरीर का तथा अपने जीवन का विवेक खो देता है एवं कीमती वस्तुओं को भी तोड़ फोड़ देता है। अपने अध्यात्मिक गुणों को नष्ट कर देता है। अत: मानव को क्रोध रुपी कषाय का त्याग करना चाहिए ताकि आत्मा उज्जवल एवं हल्की हो सके।