वेलूर. यहां आरकाट स्थित श्री जैन स्थानक में विराजित साध्वी मयंकमणि ने कहा कि संसार में चौरासी लाख योनियों में से मानव जीवन पाना सबसे दुर्लभ है क्योंकि मानव जीवन वही यथार्थ है उसका अधिकाधिक उपयोग हो एवं आत्महित साधा जाए।
शब्द बहुत थोड़े हैं और बात बहुत छोटी सी है लेकिन भाव बड़े गंभीर हैं। कहा गया है कि देखन में छोटा लगे, भाव बड़े गंभीर। जीवन का निर्माण करना है तो छोटी सी बात पर भी बड़ा चिंतन हो। उसके लिए साधना की जरूरत है। बिना साधना के सिद्धि संभव नहीं।
शिल्पी मूर्ति बनाता है तो पहले वह मूर्ति के लिए पत्थर का परीक्षण करता है कि वह तराशने लायक है कि नहीं। यदि पत्थर कठोर है तो गढऩा मुश्किल होगा और नरम है तो छैनी लगते ही बिखर जाएगा।
इसलिए उपयुक्त पत्थर की पहचान करने के बाद ही शिल्पी अपने कल्पना को साकार कर सकता है। और मूर्ति से यह प्रेरणा मिलती है कि वह किसी व्यक्ति का प्रतीक होती है उससे हमें मूर्तिमान का परिचय मिलता है। मनुष्य का साधना से ही जीवन उज्ज्वल होता है।