चेन्नई. माता-पिता द्वारा मनुष्य को सच्चे धर्म का मार्ग मितला है। ऐसे उपकारी माता पिता हर क्षेत्र में संतान का हित और भला करते हैं। पुतलीबाई ने अपने पुत्र मोहनदास करमचंद गांधी को बचपन में जो संस्कार दिए, वही संस्कार आगे चल कर जीवन में पल्लवित हुए। शिशुओं को जन्म लेने के बाद ज्ञान प्राप्त करने की तुलना में गर्भ में ज्यादा ज्ञान मिलता है।
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा परमात्मा ने संसार के स्वरूप को समझाते हुए इस जीवन को धर्म से जोडऩे की प्रेरणा दी है। जिन भाग्यशाली आत्माओं ने परमात्मा के उन दिव्य वचनों का श्रमण करके जीवन को दान, शील, तप और भावना के क्षेत्र में लगाया उनके जीवन का सदा के लिए कल्याण हो गया। मनुष्य को भी ऐसा उत्तम जिनशासन और गुरु देवों का सानिध्य मिला है तो इसका लाभ ले लेना चाहिए। जो अपने जीवन को सद्गुणों से सजाने का कार्य करते है वे जीवन को धन्य व पावन बना लेते है।
आदर्श माता पिता अपने गर्भ में शिशुओं को वह संस्कार देते है, जो पूरे सौ वर्ष में मनुष्य को नहीं मिल सकता। ऐसे श्रेष्ठ और संस्कारी माता पिता अच्छे संतान को ही प्राप्त होते है। महात्मा गांधी के जीवन के पीछे उनके माता पिता का बहुत बड़ा हाथ था। संतान के लिए माता पिता होते हैं उपकारी, जो उनके उपकारों को समझता है वही जीवन में आगे जाता है।
सागरमुनि ने कहा लोक में उजाला कर परमात्मा ने मनुष्य पर बहुत बड़ा उपकार किया है। उनके उपकारों को कभी भी भुलना नहीं चाहिए, क्योंकि परमात्मा ने अपने आचरण से इस मार्ग का गठन किया है। उन्होंने कहा कि जहां दया है वहीं सब कुछ होता है। अहिंसा जैन धर्म का हिस्सा होता है। अगर अहिंसा नहीं है तो जैन धर्म भी नहीं हो सकता है। अहिंसा का मार्ग ही मनुष्य को दीपक का ज्ञान देता है। गांधी जयंती के उपलक्ष्य में संघ के सदस्यों ने पौधारोपण किया।