चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में विराजित साध्वी कुमुदलता ने सोमवार को प्रवचन में भगवान महावीर के चौथे अणुव्रत ब्रह्मचर्य की व्याख्या करते हुए कहा महावीर स्वामी का ब्रह्मचर्य अणुव्रत मर्यादित रहने का संदेश देता है।
ब्रह्मचर्य में वह शक्ति होती है जो तोप और तलवार में संभव नहीं। जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह जीवन में बहुत कुछ हासिल कर सकता है। वासना में डूबा व्यक्ति धीरे-धीरे शिथिल होता जाता है।
साध्वी ने कहा जैन रामायण के अनुसार लक्ष्मण की ब्रह्मचर्य शक्ति के दम पर ही भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी।
उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले विजयकंवर और विजयाकंवरी का प्रसंग सुनाया जिन्होंने शादी के दिन से ही कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष का संकल्प लेकर ब्रह्मचर्य का पालन किया और समय आने पर संयम पथ की ओर अपने कदम बढाए।
ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। जो पाप के भय से परस्त्री का त्याग कर देता है, चतुर्थ ब्रह्मचर्याणुव्रती है।
साध्वी महाप्रज्ञा ने देश भक्ति गीत ‘जहां डाल-डाल पर सोने की चिडिय़ा करती है बसेरा… का संगान किया। साध्वी पदमकीर्ति ने सुखविपाक सूत्र का वाचन किया। कार्यक्रम के दौरान तपस्यार्थियों का सम्मान गुरु दिवाकर कमला वर्षावास समिति की ओर से किया गया।