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Uncategorized / ज्ञान वाणी

मन ही मित्र व सत्रु मन ही

चेन्नई,

साहुकारपेट स्थित श्री जैन भवन में विराजित उपाध्याय प्रवर रविन्द्र मुनि ने कहा कि व्यक्ति का मन ही उसका सबसे बड़ा मित्र और सत्रु होता है। मन में अगर नाकारात्मक भावना उत्पन्न होती है तो वह सत्रु है और साकारात्मक उत्पन्न होतो मित्र होता है। लेकिन जब तक मनुष्य स्वयं से कोशिश नहीं करेगा तो उसके सुखी, दुखी होने का कारण कोई और नहीं हो सकता है। जीवन में सत्रुता का भाव रखने वाले व्यक्ति अगर किसी को सहद भी देते है तो वह जहर का काम करता है। वहीं अच्छी सोच वाले अगर जहर भी दे तो वह अमृत बन जाता है। व्यक्ति का सब कुछ उसके मन पर ही निर्भर करता है। वह जैसा सोचता है वैसा ही उसके साथ होता है। दुनियां में दिखावा करना झूठ बोलना बहुत ही आसान है। जो सच्चाई के मार्ग पर चलते है उन्हें जीवन में कभी भी परेशानी नहीं आती है। आज के समय में व्यक्ति के आचरड़ को देख कर लगता है कि मनुष्य के चोले में इंसान नहीं बल्कि जानवर है। जीवन में मनुष्य बन कर नहीं बल्कि उठ कर आगे निकलने से जीवन सफल होगा। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनंदमल छल्लानी सहित अन्य गणमान्य उपस्थित थे।

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