एमकेबी नगर स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा इस संसार में मनुष्य एक सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। उनकी श्रेष्ठता और महत्ता का कारण उनकी अपार क्षमताएं है। मनुष्य जन्म मंदिर की सीढ़ी की भंाति है जो दोनो दिशाओं में गमन करता है। मनुष्य राम बन सकता है और रावण भी। कृष्ण भी बन सकता है और कंस भी।
महावीर भी बन सकता है और गोशालक भी। कुछ भी बनने के लिए मनुष्य की इच्छा और जीवन जीने की प्रक्रिया कैसी है इस पर निर्भर करता है। मनुष्य का यह सौभाग्य है कि वो परमात्मा के पद को प्राप्त करने की सााधना कर सकता है। मनुष्य का जीवन मोक्ष प्राप्ति का प्रथम सोपान है। यह हीरों और रत्नों से अधिक मूल्यवान है। बुद्धिमान पुण्यात्मा इसे सार्थक कर लाभ उठा लेता है और कोई भोग विलास पाप कार्यो में लगा दे इसका कौड़ी का मूल्य नहीं है।
साध्वी स्नेह प्रभा जी ने कहा कि दया ही धर्म की जननी है। दया रुपी नदी के किनारे सभी धर्मों के वृक्ष फलते फूलते है।इस नदी के सूख जाने पर ये वृक्ष अधिक समय तक नहीं रहते। प्राणियों की दया जो फल देती है वो चारो वेद भी नहीं दे सकते। तीर्थों के स्नान और यज्ञ भी वो फल नहीं दे सकते। सच्ची दया तब होती है जब उसकी दृष्टि विशाल और विराट हो जाएगी।
जब वो हर आत्मा के अंदर परमात्मा के दर्शन करने लगेगा। हमारे साथ अकसर ऐसा होता है कि हम मनुष्य के अंदर छिपी परमात्मा की आभा को तो नकार देते है और मंदिर में जाकर पत्थर की मूर्ति में परमात्मा की खोज करते है।प्रभुता को केवल मंदिरो में निहारना मनुष्य की भूल व अज्ञानता है अगर मंदिर में विराजित पत्थर की मूर्ति में परमात्म तत्व स्थापित हो सकता है तो मनुष्य की चैतन्य शक् ित में ये परमात्म तत्व स्थापित क् यों नहीं हो सकता। इस काया के भीतर जो प्राण है वो परमात्मा की आभा ही तो है।