चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय ने ज्ञान पंचमी के शुभ अवसर पर ज्ञान की महिमा बताई। मुनि संयमरत्न विजय कहा भारतीय संस्कृति में ज्ञान को परम पवित्र माना गया है।
जन्म, जरा व मृत्यु रूपी भव रोगों के निवारण के लिए ज्ञान अमृत के समान है। सम्यग् ज्ञान गुरु से प्राप्त होता है, इसलिए ज्ञान के साथ-साथ गुरु का भी बड़ा महत्व है। गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता। ज्ञान मनुष्य के आचरण को पवित्र करता है, इसलिए इसका स्थान सब गुणों में प्रथम है।
केवलज्ञान सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है जो आत्म प्रत्यक्ष होता है। चंद्र, सूर्य आदि से तो मात्र आकाश प्रकाशित होता है, पर केवलज्ञान से समस्त लोकालोक प्रकाशित होते हैं। ज्ञान रहित तप अज्ञान तप कहलाता है। अज्ञानता के साथ किया गया तप फलदायी नहीं होता।
अज्ञानी जीव पशुतुल्य होता है। करोड़ों वर्षों में अज्ञानी जितने कर्मों का क्षय करता है, उतने कर्मों का क्षय मन गुप्ति, वचन गुप्ति और काय गुप्ति से युक्त ज्ञानी एक श्वासोश्वास में कर लेता है।
शास्त्र अनंत है, आयु अल्प, इसलिए केवल वही ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जिससे मुक्ति प्राप्त हो। विद्या वही है जिससे मुक्ति मिले। ज्ञान सहित क्रिया ही मुक्ति प्रदायक होती है। चिंतन करने वाला मर्म को पा जाता है, पर चिंता करने वाला मात्र व्याकुलता पाता है।
विद्या भले ही कम हो, पर चिंतन सही दिशा में अधिकाधिक हो तो ज्ञान प्राप्त हो जाता है। बुद्धिमान बनने का उपाय है-अधिक सुनना और कम बोलना तथा ज्ञानी बनने का उपाय है-कम पढऩा और अधिक चिंतन करना। चिंतन यदि सही दिशा में हो तो सद्गति प्राप्त होती है और वही चिंतन यदि विपरीत दिशा में हो तो जीव दुर्गति पाता है।