चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि की गुरुवार को नौ दिवसीय एकांत मौन साधना महामांगलिक के साथ खत्म हुई। इस मौके पर उन्होंने कहा जीवन को आदर्श बनाने के लिए नियम बंधन की आवश्यकता होती है। हमेशा त्याग करने के लिए तत्पर रहने और संयम व धर्म के पथ पर चलने वालों का सम्मान होता है।
उन्होंने कहा कहने से नहीं बल्कि ब्रह्मचारी बनने के लिए अंतरात्मा से जुडऩा होता है। जीवन में कुछ अलग करने का भाव रखने वाला मनुष्य ही इतिहास रचता है। साथ ही उन्होंने मिन्ट स्ट्रीट स्थित जैन स्थानक जिसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था, के नवीनीकरण में सहयोग के लिए सभी को आगे आने की प्रेरणा दी।
सागरमुनि ने कहा मनुष्य की बोली नहीं बल्कि उसका कार्य बोलता है। बोलने से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता, बल्कि हासिल करने के लिए क्रिया की जरूरत होती है और जो करते हैं वही बढ़ते हैं। गुरुदर्शन से सुदर्शन की प्राप्ति होती है। जिसके पाप टल जाते हैं वही पाठ पर बैठ पाते हंै। संसार में थोड़े समय का सुख है लेकिन इस पाठ पर बैठने वाला सदा सुखी हो जाता है।
इस मौके पर मुनि संयमरत्न विजय ने भी उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा जीवन में पैंसठिया यंत्र की साधना बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस मौके पर संघ अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी, निर्मल मरलेचा, कोषाध्यक्ष गौतमचंद दुगड़ के अलावा पृथ्वीराज बागरेचा, मूलचंद सुराणा, कमल कोठारी, पदम सिंघवी, उत्तमचंद नाहर, राजूभाई मूथा सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।
जय संस्कार महिला मंडल की राखी गुलेच्छा, मंजू भिडक़चा, पिंकी सुराणा, कुसुम कोठारी और संतोष कांकलिया सहित अन्य सदस्यों ने भी हिस्सा लिया। संचालन मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने किया। बैरागन सिमरन का संघ द्वारा सम्मान किया गया।। कार्यक्रम में गौतममुनि की मौन साधना के लिए तैयार पैंसठिया यंत्र की बोली हेमाबाई रिखबचंद गादिया ने स्वीकार की जिनका सम्मान किया गया।