अक्कीपेट जैन संघ में गोचरी पौषध का आयोजन
बेंगलुरु। आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी की निश्रा में युवाओं के लिए गोचरी पौषध का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में युवक युवतियाँ सम्मिलित हुए। इस अवसर पर आचार्यश्री ने कहा कि जब मन इन्द्रियों के वशीभूत होता है, तब संयम की लक्ष्मण रेखा लाँघे जाने का खतरा बन जाता है, भावनाएँ बेकाबू हो जाती हैं।
असंयम से मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है, इंसान असंवेदनशील हो जाता है तथा मर्यादाएँ भंग हो जाती हैं। इन सबके लिए मनुष्य की भोगी वृत्ति जिम्मेदार है।
उन्होंने कहा कि भौतिक सुख-सुविधाएँ, जबर महत्वाकांक्षाएँ, तेजी से सब कुछ पाने की चाहत मन को असंयमित कर देती है जिसके कारण मन में तनाव, अवसाद, संवेदनहीनता, दानवी प्रवृत्ति उपजती है।
फलस्वरूप हिंसा, भ्रष्टाचार, अत्याचार, उत्पीड़न, घूसखोरी, नशे की लत जैसे परिणाम सामने आते हैं। आचार्यश्री ने कहा कि काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या असंयम के जनक हैं व संयम के परम शत्रु हैं। इसी तरह नकारात्मक प्रतिस्पर्धा आग में घी का काम करती है।
आचार्यश्री आगे बोले कि असल में सारे गुणों की डोर संयम से बँधी होती हैं। असंयम अनैतिकता का पाठ पढ़ाता है। अपराध की ओर बढ़ते कदम असंयम का नतीजा हैं। इन्द्रियों को वश में रखना, भावनाओं पर काबू पाना संयम को परिभाषित करता है। इंसान को इंसान बनाए रखने में यह मुख्य भूमिका अदा करता है।
अध्यात्म वह यज्ञ है जिसमें सारे दुर्गणों की आहुति दी जा सकती है एवं गुणों को सोने-सा निखारा जा सकता है। आधुनिक दौर में भोग से योग में संतुलन बनाए रखना नितांत आवश्यक है। आज जीवनशैली व दिनचर्या में बदलाव की दरकार है। मनुष्य में देव और दानव दोनों बसते हैं अतः हम भले ही देव न बन पाएँ, लेकिन दानव बनने से हमें बचना चाहिए।