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भोगवादी मानसिकता भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं: आचार्य विमलसागर

भोगवादी मानसिकता भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं: आचार्य विमलसागर

चेन्नई. बुद्धिवीर वाटिका में मंगलवार को आचार्य विमलसागर ने कहा भोगवाद दुख की राह है जिस पर किसी को भी सुख और संतोष नहीं मिल सकता। भोगवादी मानसिकता भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं, यह पश्चिमी संस्कृति की देन है।

आधुनिक भारतीय समाज अपनी जड़ों से टूट रहा है। वह योग, अध्यात्म, संतोष और साधनाओं का पथ छोडक़र भोग-उपयोग और मेटिरियलिज्म की ओर भाग रहा है। तनाव, रोग, असंतोष, तृष्णा, वासना सब उसी की उपज है।

यह आने वाले जमाने के लिए खतरनाक संकेत है। आचार्य ने २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के दीक्षा कल्याणक के उपलक्ष्य में आयोजित संयम अभिवंदना समारोह में कहा दो उपवास की साधनापूर्वक नेमिनाथ ने एक हजार युवाओं के साथ दीक्षा अंगीकृत की थी। जीवन के आखिरी समय में भी वे संलेखनापूर्वक एक माह के उपवास कर संसार से हमेशा के लिए पार उतर गए थे।

उन्होंने कहा वस्तुओं और व्यक्तियों में सुख की अभिलाषा मानव का बहुत बड़ा भ्रम और अज्ञान है। वस्तुओं की भूख बढऩे के साथ ही दुख भी बढ़ते जाएंगे। यदि वस्तुओं, इमारतों व्यक्तियों या धन-वैभव एवं भोग में सुख होता तो सभी बड़े-बड़े राजा महाराजा पूरी तरह सुखी हो गए होते।

सच्चाई यही है कि अनेक रानियों, अपार संपत्ति और विशाल साम्राज्य ने भी किसी को शांति से जीने नहीं दिया। बुधवार को करीब छह सौ साधक निरंतर तीन उपवास की साधना पूरी करेंगे। इनमें बालक व युवा भी शामिल हैं।

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