गोपालपुरम स्थित छाजेड़ भवन में विराजित कपिल मुनि ने अष्ट दिवसीय पर्वाधिराज पर्यूषण प्रवचन माला के तहत शनिवार को कहा कि श्रमण संस्कृति का चरम और परम उद्देश्य बंधन से मुक्ति प्राप्त करना है।
भूल करने के लिए कोई वक्त अच्छा नहीं होता और भूल सुधारने के लिए कोई वक्त बुरा नहीं होता। भूल का अहसास होते ही उसका निराकरण कर लेना चाहिए। उन्होंने कहा, आदमी के व्यक्तित्व की पहचान उसके वचन व्यवहार से होती है।
इंसान क्रिया-कलाप करते हुए वीतरागता के उद्देश्य से जीवन यात्रा तय करता है। जीवन में तप-त्याग के आदर्शों को सजाने की प्रेरणा का उपहार लेकर आता है पर्वाधिराज पर्यूषण पर्व। इसका भौतिकता से कोई ताल्लुक नहीं है।
इन दिनों में श्रावक-श्राविकाएं अपनी प्रवृत्ति को अध्यात्म रस से अनुप्राणित करते हैं। जीवन में जो प्रमाद और भूल हुई है उसका संशोधन करना ही इस पर्व का ध्येय होना चाहिए ।
हमारा शब्द प्रयोग और बातचीत का तरीका सभ्य और शालीन होना चाहिए। वाणी ही एक ऐसा माध्यम है जो दूसरों से हमें जोड़ती है।
पैसे और सुख का कोई आनुपातिक संबंध नहीं है है। पैसा आपको सुविधा उपलब्ध करा सकता है मगर सुख नहीं। सुख प्राप्ति के लिए पैसों के पीछे बेतहाशा दौड़ते रहने की भूल कदापि न करें।
सुख का संबंध तो सम्यग दृष्टीकोण से है। अगर दृष्टि सम्यग नहीं है तो परमात्मा भी इंसान को सुखी नहीं बना सकता। प्रवचन के पूर्व मुनि ने अन्तगढ़ सूत्र का वांचन किया।