चेन्नई. आलंदूर जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि मोक्ष के चार द्वार होते हैं दान, शील, तप और भावना। जैन धर्म भावना प्रधान धर्म है। जैसे पहियों में हवा के बिना गाड़ी चल नहीं सकती उसी प्रकार भाव के बिना मोक्ष की यात्रा संभव नहीं है। शुद्ध भाव ही निर्वाण की नींव है।
जिस प्रकार पति के बिना नारी और राजा के बिना सेना का कोई महत्व नहीं होता उसी प्रकार भाव के बिना की गई क्रिया निष्फल एवं व्यर्थ होती है। एक ही क्रिया किए जाने पर भी भावों में अंतर होने से उसके परिणाम में भी अंतर आता है। द्रव्य हिंसा से भी ज्यादा भाव हिंसा नुकसानदायक होती है। मात्र बाहरी क्रिया से किसी व्यक्ति की पहचान नहीं की जा सकती।
मुनि ने कहा द्रव्य से मजबूरीवश पाप करना पड़े तो भी भाव से निर्लिप्तता होनी चाहिए। भाव से ही व्यक्ति की पहचान होती है। भावना से ही भवों का नाश होता है। भाव धर्म क्रिया के लिए टॉनिक है। दान, तप ,जाप, सामायिक और धर्म आराधना भाव से की जानी चाहिए। द्रव्य ही भाव में सहायक बनता है। दान देते समय द्रव्य, पात्र एवं भाव तीनों की शुद्धि होनी चाहिए।
जिसकी जैसी भावना होगी उसे वैसा ही फल प्राप्त होगा। मोक्ष प्राप्ति करना कोई कठिन नहीं है इसके लिए भावों में उत्कृष्टता लाने की जरूरत होती है। जिस प्रकार एक व्यापारी कमाई की ओर ध्यान देता है उसी प्रकार हर धर्म क्रिया के परिणाम पर चिंतन करते हुए कार्य करना चाहिए। जिस प्रकार बूंद बूंद से पत्थर में भी छेद किया जा सकता है उसी प्रकार भावना से भी कर्मों के वृंद काटे जा सकते हैं ।
इस अवसर पर जयमल जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र मरलेचा, मंत्री गौतमचंद रुणवाल ने अक्षय तृतीया पारणा के लिए विनंती प्रस्तुत की जिस पर मुनि ने स्वीकृति प्रदान की। मुनिवृंद यहां से विहार कर वेस्ट सईदापेट जैन स्थानक पहुंचेंगे।