चेन्नई. रक्षा बंधन एवं भाई दूज ये दो त्यौहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम को समर्पित हैं। भाई का बहन के प्रति क्या कर्तव्य होता है बहन का भाई के प्रति क्या फर्ज होता है यह सिखाने व समझाने के लिए ही इन पर्वों का आगमन होता है। आज के युग में पैसे की दौड़ व स्वार्थ ने इंसान को इतना अंधा बना दिया है कि वह पर्वो की गरिमा ही भूल गया है। यह विचार ओजस्वी प्रवचन कार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट संघ के प्रांगण में चल रही महावीर कथा के अंतिम दिवस पर व्यक्त किए।
उन्होंने कहा भगवान महावीर का जब निर्वाण हो गया तो यह समाचार सुन उनके बड़े भाई नंदीवर्धन का मन आकुल व्याकुल हो उठा। वे पश्चाताप की आग में जलने लगे। बार-बार उन्हें अपने अहं का कांटा चुभने लगा। सोचा काश! मैं अपने बड़े होने के अभिमान को छोड़ पाता तो भाई वर्द्धमान के भगवान तीर्थंकर महावीर बनने पर उनके दर्शन कर पाता। उनकी वाणी सुन पाता।
अब आंसू बहाने के सिवाय मेरे पास कोई रास्ता नहीं। पूरा दिन पूरी रात बीत जाती है। न भोजन करते हैं, न पानी पीते हैं। जब यह समाचार उनकी बहन सुदर्शना के पास पहुंचता है तो वह दौड़ी हुई आती है और अपने भाई नंदीवर्धन को समझाती हैं। भाई! शोक का त्याग करो। वर्द्धमान के साकार रूप को तुम स्वीकार न कर पाओगे शायद इसीलिए वे अब निराकार हो गए।
देह में छोटे-बड़े का भेद होता है, आत्मा में कैसा भेद? देखे तुम्हारे भीतर जो वर्द्धमान हैं, उन्हें पहचानों उन्हें जगाओ और तब नंदी वर्द्धन को अहसास होता है कि सच में वर्द्धमान भले ही संसार से विदा हो गए पर उनकी वाणी, उनकी शिक्षाएं मेरे पास हैं। और वर्धमान के शब्द याद आते हैं- नंदीवर्धन! तुम सिद्धार्थ राजा के पुत्र हो, जीवन के अर्थ को सिद्ध करना। सब प्राणियों के जीवन में आनंद का संवर्धन करना।
बहन के समझाने से सारा शोक दूर हो जाता है और तब बहन सुदर्शना अपने हाथों से भाई नंदीवर्धन को भोजन करवाती है। इस प्रकार जैन परंपरा में भाई दूज की यह प्रथा प्रारंभ हुई। इस पर्व से हमें शिक्षा मिलती है कि- कभी भाई कष्ट में हो तो हमें उसका ध्यान रखना चाहिए और बहन के जीवन में कभी कोई दुख आए तो भाई भी उस दुख को दूर करने का प्रयास करें।