चेन्नई. जैन संघ मदुरान्तकम में विराजित साध्वी प्रतिभा ने कहा कि श्रद्धा हृदय की आंख है। हृदय की आंख जब खुल जाती है तो बुद्धि तुच्छ हो जाती है। जहां सोच विचार और तर्क को स्थान नहीं मिलता वहां श्रद्धा होती है। समुद्र में जब तूफान हो और आपकी नौका डगमगा रही हो तब श्रद्धा किनारो की बात करती है। जो नहीं देखा उस पर भरोसा और जो नहीं सुना उस पर भी भरोसा करना श्रद्धा ही सिखाती है।
इसलिए कहते है कि अगर दिल न माने तो खुदा भी हकीकत नहीं है और अगर दिल माने तो पत्थर में भी भगवान है। आमतौर पर लोग श्रद्धालुओं को कमजोर समझते है। पर यह गलत है। श्रद्धा यानि अनजान में उतरने का साहस। समुद्र में गोता लगाने पर भी यदि मोती न मिले तो यह मत मानो कि समुद्र में मोती नहीं है। यह सोचो कि बार बार गोता लगाने का साहस अपेक्षित है।
यह साहस श्रद्धा से ही जगता है। स्पष्ट है कि श्रद्धा का सीधा संबंध हमारी दृढ़ता से है। इसलिए श्रद्धालु कभी कमजोर नहीं होगा। आज के युग में लोगो की धर्म के प्रति श्रद्धा कम होती जा रही है। श्रद्धा रहेगी तो तुझे सभी दिखाई देंगे। क्रोध में रहेगा तो तुझे कुछ भी दिखाई नहीं देगा।